श्री गणेश एक, रूप अनेक

पुराणों में वर्णित श्री गणेश

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ऋषि गौतम

गणेश शब्द की व्युत्पत्ति हुई है गणानां जीवजातानां यः ईशः स्वामी सः गणेशः से। अर्थात,जो समस्त जीव जाति के ईश-स्वामी हैं वह गणेश हैं। इनकी पूजा से सभी विघ्न नष्ट होते हैं। लेकिन अन्य देवताओं की तरह गणेश जी के भी कई रूप हैं।

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गणेश पुराण के क्रीड़ा खंड में युग-भेद से गणेश जी के चार रूपों की व्याख्या करके उनके चार भिन्न वाहन बताए गए हैं।

सतयुग में गणेश जी का वाहन सिंह है,वे दस भुजा वाले हैं और उनका नाम विनायक है।

त्रेता युग में वाहन मोर है,छः भुजाएं हैं और नाम मयूरेश्वर है।

द्वापर में वाहन चूहा (मूषक) है,भुजाएं चार हैं और नाम गजानन है।

कलयुग में दो भुजाएं हैं वाहन घोड़ा है और नाम धूम्रकेतु है।

इन चारों रूपों की उपासना विधि व लीला चरित्र का विवरण गणेश पुराण में प्राप्त होता है।

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वर्तमान में गणेश जी का सर्वप्रसिद्ध वाहन मूषक(चूहा)माना जाता है। विभिन्न मंत्रों के ध्यान में इनके मूषक वाहन का ही संकेत पाया जाता है।

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विशिष्ट वस्तुओं के पूजन भेद से गणेश जी के अनेक रूप प्रसिद्ध हैं जैसे हरिद्रा गणेश,दूर्वा गणेश,शमी गणेश,गोमेद गणेश आदि।

कामना भेद से भी इनके भिन्न रूपों की उपासना की जाती है जैसे संतान प्राप्ति हेतु संतान गणपति,विद्या प्राप्ति हेतु विद्या गणपति आदि।

सामान्य उपासक दैनिक उपासना में गणेश जी के प्रसिद्ध द्वादश नाम स्तोत्र,संकट नाशक स्तोत्र,गणपति अथर्वशीर्ष,गणेश कवच,शतनामस्तोत्र आदि का सुविधानुसार पाठ करके इनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

विशिष्ट उपासना के अंतर्गत गणपति अथर्वशीर्ष से इनका अभिषेक किया जाता है। गणेश पुराण एवं रुद्रयामल तंत्र में वर्णित सहस्र नामस्तोत्र की नामावली के द्वारा दूर्वा से इनका अर्चन किया जाता है। गणपति योग भी वैदिक पद्धति के द्वारा संपन्न कराया जाता है।

अलग-अलग होती है उपासना-

भगवान गणेश की उपासना अनेक प्रकार से होती है। गणेशमूर्ति के अलग-अलग प्रकार की अर्चना का विधान भी अलग-अलग होता है। दो से अठारह भुजा एवं एकमुखी से दशमुखी मूर्तियों का पूजन होता है और इनसे संबंधित मंत्र,कवच,यंत्र,स्त्रोत आदि का विधान तंत्र शास्त्र के मान्य ग्रंथों,मंत्र महार्णव,मंत्रमहोदधि,शारदा तिलक,तंत्र सार आदि में अंतर पाया जाता है। गणपति पूजन में मुख्यतः दूर्वा,शमी के पत्ते और मोदक (लड्डू)अर्पित किए जाते हैं।

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