श्री गणेश के प्रथम पूज्य होने की रोचक कथाएं

प्रस्तु‍ति - ऋषि गौतम

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परमपुरुष (शिव) और प्रकृति (पार्वती) के पुत्र श्रीगणेश को सबसे पहले पूजने के कारण उन्हें प्रथम पूज्य कहा जाता है। समस्त कामों के निर्विघ्न संपन्न होने के लिए गणेश-वंदना की परंपरा युगों पुरानी है। मानव तो क्या, देवता भी सर्वप्रथम इनकी अर्चना करते हैं। पुराणों में श्रीगणेश के जन्म व प्रथम पूज्य होने की अनेक कथाएं हैं।


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पहली कथा-

गणेश पुराण की कथा के अनुसार,भगवान शंकर त्रिपुरासुर से युद्ध के पूर्व गणेश जी का पूजन करना भूल गए। महादेव को जब विजय नहीं मिली,तब उन्हें याद आया। युद्ध रोककर शंकरजी ने गणेश-पूजन किया। इसके बाद वे फिर से युद्ध करने गए और त्रिपुरासुर का वध कर दिया। पुराणों के कई श्लोकों से यह भी स्पष्ट होता है कि मात्र देवताओं ने ही नहीं,वरन् असुरों ने भी गणेश की अर्चना की है।





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दूसरी कथा-

पुराणों में गणेश को शिव-शक्ति का पुत्र बताया गया है। शिवपुराण की कथा में है कि माता पार्वती ने अपनी देह की उबटन से एक पुतले का निर्माण किया और उसमें प्राण फूंककर अपना पुत्र बना दिया। इस पुत्र के हाथ में एक छड़ी जैसा अस्त्र देकर मां ने उसे अपना द्वारपाल बना दिया।

उनकी आज्ञा का पालन करते हुए बालक ने भगवान शंकर को घर में प्रवेश नहीं करने दिया। तब शिवजी ने अपने त्रिशूल से उसका मस्तक काट दिया। बाद में बालक गजमुख हो गया।

पुत्र की दुर्दशा से क्रुद्ध जगदंबा को शांत करने के लिए जब देवगणों ने प्रार्थना की,तब माता पार्वती ने कहा-‘ऐसा तभी संभव है,जब मेरे पुत्र को समस्त देवताओं के मध्य पूज्यनीय माना जाए।’

शिव जी ने उन्हें वरदान दिया-‘जो तुम्हारी पूजा करेगा,उसके सारे कार्य सिद्ध होंगे।’ब्रह्मा-विष्णु-महेश ने कहा-‘पहले गणेश की पूजा करें,तत्पश्चात् ही हमारा पूजन करें।’इस प्रकार गणेश बन गए‘गणाध्यक्ष’।‘गणपति’का मतलब भी है देवताओं में सर्वोपरि।



तीसरी कथा -

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वहीं ब्रह्मवैव‌र्त्त पुराण के कथानक में आया है कि गणेश के जन्मोत्सव में पधारे शनिदेव ने जैसे ही उन्हें देखा,वैसे ही उनका सिर आकाश में उड़ गया। भगवान विष्णु तुरंत गरूड़ पर चढ़कर गजमस्तक लेकर आए। भगवान शंकर ने प्राण मं‍त्र पढ़कर उन्हें पुनर्जीवित किया। शंकर जी ने भी गणेश जी को आशीर्वाद दिया,‘मैंने सबसे पहली तुम्हारी पूजा की है,इसलिए तुम सर्वपूज्य और योगीन्द्र कहलाओगे’। गणेश चालीसा में लिखा है-

पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा।
बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥
गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी।
सो दुख दशा गयो नहिं बरणी॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा।
शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए।
काटि चक्र सो गज शिर लाए॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो।
प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥

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अन्य मान्यता -

गणेशजी के प्रथमपूज्य होने में कुछ गूढ़ रहस्य निहित हैं। विद्वान एकमत हैं कि नाद से ही संपूर्ण सृष्टि उत्पन्न हुई है। यह नाद ‘ॐ’कार है। गणेशजी चुकि निर्गुण-निराकार ओंकार का सगुण-साकार स्वरूप हैं। उनके एकदंत-गजमुख रूप में प्रणव (ॐ)स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

श्रीगणेश बाद में गजमुख इसीलिए हुए,क्योंकि उन्हें अपने विग्रह में प्रणव का दर्शन कराना था। जैसे सब मंत्रों में सर्वप्रथम ॐ (प्रणव) का उच्चारण किया जाता है,वैसे ही प्रणव के मूर्तिमान स्वरूप श्रीगणेश का सभी देवताओं में पहले पूजन होता है। गणेश जी के ओंकारस्वरूप का चित्रण गणपत्यर्थवशीर्षोपनिषद् में मिलता है।



श्रीगणेशपुराण में गणपति का आदिदेव के रूप में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार,भगवान विष्णु की तरह आदिदेव गणेश लोककल्याणार्थ प्रत्येक युग में अवतार लेते हैं। सतयुग में वे दसभुजा वाले महोत्कट विनायक के रूप में अवतरित हुए,तब उनका वाहन सिंह था।

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त्रेतायुग में वे छह भुजाधारी मयूरेश बने। द्वापरयुग में चतुर्भुजी गजानन का वाहन मूषक बना। कलियुग में उनका‘धूम्रकेतु’नामक अवतार होगा,जिनका वाहन अश्व होगा।

दार्शनिक मानते हैं कि जल,पृथ्वी,अग्नि,वायु और आकाश से संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है। जल के अधिपति श्रीगणेश माने गए हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि जीवोत्पत्ति सबसे पहले जल में हुई। अतएव गणपति को प्रथमपूज्य माना जाना विज्ञानसम्मत भी है। गणेशजी बुद्धि के देवता कहे गए हैं। हमें जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति गणेशजी की अनुकंपा(बुद्धि)से ही मिल सकती है।

गणेशजी पूजा-पाठ के दायरे से बाहर निकलकर हमारे जीवन से इतना जुड़ गए हैं कि किसी भी काम को शुरू करने को हम‘श्रीगणेश करना’कहते हैं। गणेशोत्सव तो साल में केवल एक बार होता है,परंतु श्रीगणेश का स्मरण हमारी दिनचर्या में शामिल है। क्योंकि हर कोई आज के इस प्रतिस्पर्धा वाले युग में गणेशजी की तरह आगे रहना चाहता है।

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