बनारस की सड़कों और चेहरे को चमकाने की कवायद चल रही है। चुनाव के चलते यहाँ काफी गहमागहमी भी है। मुख्य सड़क से जैसे ही आप बजरडीहा की ओर मुड़ते हैं तो एक अलग ही वाराणसी से आपका परिचय होता है। कच्ची-पक्की सड़क और दोनों और गंदी बजबजाती नालियाँ....सड़क पर दौड़ लगाते अधनंगे बच्चे और बीच में अचानक आ जाती एक बकरी। पान की दुकान पर पूछो की आज इतनी ख़ामोशी क्यों है तो बोले दावत है। कहाँ है? तो बोले आगे मैदान के पास, मस्जिद की तरफ। उधर ही चल दिए। फिर एक पान की दुकान जहाँ कुल्फी की चुस्की लेता एक नौजवान....। पूछा क्यों भई ये दावत कहाँ है? उसने आगे की ओर इशारा किया, कहा.... वहाँ। अच्छा ये बताओ चुनाव हैं, कुछ पता है। हाँ पता है। तुम्हारा वोट है। बोला हाँ है... किसको वोट दोगे... हँस दिया। फिर पूछा तो बोला अजय राय को देंगे। क्यों मोदी को नहीं दोगे? बोला नहीं .... अच्छा केजरीवाल को .... बोला नहीं वो तो बाहर का है।
मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे!
अक्सर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोई तागा टूट गया या ख़तम हुआ
फिर से बाँध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमें
आगे बुनने लगते हो
देख नहीं सकता है कोई
मैंने तो इक बार बुना था एक ही रिश्ता