'आप' की विचारधारा को लेकर सवाल

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आप ने अपनी विचारधारा के बारे में अब तक कोई बात नहीं कही है। पार्टी न तो वामपंथ की बात करती है और दक्षिणपंथ की। हालांकि इसमें कई बुराई नहीं है कि पार्टी ने बीच का रास्‍ता चुना है, लेकिन उस बीच के रास्‍ते को भी एक नाम देना जरूरी है। इससे पार्टी में एक संदेश जाता है और कार्यकर्ताओं व नेताओं को लक्ष्‍मण रेखा का आभास रहता है।

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यदि विचारधारा का संकट नहीं होता तो कश्‍मीर में जनमत संग्रह वाले प्रशांत भूषण पर बवाल न होता और अरविंद केजरीवाल को उस बयान से खुद को अलग न करना पड़ता। एक ओर प्रशांत भूषण हैं, जिनका झुकाव वामपंथी विचारधारा का आभास कराता है तो दूसरी ओर कुमार विश्‍वास की बातों में भगवा झलक मिलती है।

ऐसे में 'आप' को विभिन्‍न मुद्दों पर पार्टी का रुख, रवैया या फिर अपनी विचारधारा को अपने नेताओं और जनता के समक्ष स्‍पष्‍ट करना होगा। हालांकि, अभी तक पार्टी ऐसा करने में असफल रही है।

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आप के साथ हर रोज एक बड़ा नाम जुड़ रहा है। लाल बहादुर शास्‍त्री के पोते आदर्श शास्‍त्री, मीरा सान्‍याल, पॉप सिंगर रैमो, मेधा पाटकर, मल्लिका साराभाई जैसे नाम 'आप' का दामन थाम चुके हैं। 'आप' के सदस्‍यता अभियान में भी हजारों लोग जुड़ रहे हैं, लेकिन इनमें सबसे ज्‍यादा लोग सिविल सोसायटी से जुड़े रहे हैं।

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दूसरे शब्‍दों में कहें तो ये वो लोग हैं, जो कि अपनी विचारों को लेकर अडिग हैं और वर्षों तक उन्‍हीं विचारों के लिए काम करते रहे हैं। इस कारण से नए और पुराने कार्यकर्ताओं में भी मतभेद देखने को मिल रहा है। हाल में 'आप' से जुड़ने वाली मल्लिका साराभाई ने पार्टी के संस्‍थापक सदस्‍यों में एक रहे कुमार विश्‍वास को चुनौती दे डाली।

साराभाई ने सीधे सवाल किया- क्‍या कुमार विश्‍वास ने पैसे लेकर मोदी की तारीफ की थी? इस पर कुमार विश्‍वास ने कहा- मैं नहीं जानता ये कौन हैं। इसी तरह से मेधा पाटकर जैसे लोग जो वर्षों तक आंदोलन से जुड़े रहे हैं, उनकी अपनी विचारधारा है। इस वजह से 'आप' को किसी एक मुद्दे पर पार्टी में ही आम राय बनाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ सकता है।

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अभी तक 'आप' का सबसे ज्यादा जोर भ्रष्टाचार को मिटाने को लेकर रहा है लेकिन चूंकि पार्टी अब दिल्ली में सत्ता संभाल रही है इसलिए उसे और भी बहुत से विषयों का सामना करना पड़ेगा और उन स्थितियों में अंतर पैदा करने की कोशिश करनी होगी जिनसे हर आम आदमी अपने को घिरा पाता है।

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पानी, बिजली, यातायात, नौकरियां, प्रशासनिक व्यवस्‍था और अन्य बहुत से विषयों पर पार्टी को न केवल एक सुस्पष्ट विचार देना होगा वरन भ्रम की स्थिति में नीर क्षीर विवेक का परिचय भी देना होगा। उसे महसूस करना होगा कि आज दिल्ली के लोगों की जो आकांक्षाएं उनसे हैं, वैसी ही अपेक्षाएं उन्हें राष्ट्रव्यापी सफलता मिलने पर लोग कर सकते हैं। आखिर पार्टी का यूएसपी ही है कि वह परम्परागत और बड़े दलों से पूरी तरह अलग है।

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