कितनी सीटों की उम्मीद है?
यह मतदाता का विशेषाधिकार है। हमें इस प्रपंच में नहीं पड़ना है। मैं इसे पाखंड मानता हूं कि मैं जीतूंगा या वो हारेगा। हिन्दुस्तान का मतदाता जो चाहेगा वो होगा, लेकिन इतना तय है कि बदलाव का माइंडसेट बन चुका है और इंदौर का मतदाता बदलाव के लिए तैयार है। हिन्दुस्तान में भी बदलाव की लहर है। लोकशक्ति का उदय होगा और आम आदमी की ताकत बढ़ेगी।
चुनाव आचार संहिता लगने के बाद एक तरफ गुजरात में केजरीवाल को रोक दिया जाता है, दूसरी ओर उनकी गिरफ्तारी की अफवाह के बाद आप कार्यकर्ता दिल्ली में प्रदर्शन और हिंसा पर उतारू हो जाते हैं, क्या यह उचित है?
दोहरे मापदंड है। गुजरात में चुनाव की घोषणा होते ही अरविन्दजी को तो रोक दिया जाता है, लेकिन उसके एक दिन बाद ही मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल समेत धरने पर बैठ जाते हैं और चुनाव आचार संहिता और धारा 144 का उल्लंघन किया जाता है। यह दोहरा मापदंड नहीं है क्या? मप्र का मंत्रिमंडल लोकतंत्र का मखौल उड़ाता है और चुनाव आयोग मूकदर्शक बना रहता है। शिवराज और मंत्रिमंडल पर एफआईआर दर्ज करनी चाहिए। सरकार को भी कानून का पालन करना चाहिए।
इंदौर को लेकर आप क्या सोचते हैं?
इंदौर को अराजकतापूर्ण तरीके से विस्तारित किया जा रहा है। 29 गांवों को शहर में मिलाने की कोशिश असंवैधानिक हरकत है। राज्य शासन मनमानी पर तुला है। हमारे पास पीने का पानी नहीं है। प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर शहर का विकास होना चाहिए। नगर निगम और आईडीए को मिलाकर मजबूत शहरी सरकार बनानी चाहिए। इनके मिलने से अक्षमता सक्षमता में बदल जाएगी।
इंदौर में वाहनों की संख्या को नियंत्रित किया जाना चाहिए। यह नई बात नहीं है सिंगापुर में ऐसा होता है। जिसके पास पार्किंग की जगह नहीं है वह कार नहीं खरीद सकता। यहां जिसके पास जगह नहीं वह तीन-तीन कार खरीद लेता है। उसका नतीजा यह है कि सड़क की गतिशीलता समाप्त हो गई है। आप पूरे इंदौर को भी तोड़ डालेंगे तो भी काम नहीं चलेगा। ट्रॉफिक जाम की वजह से 75 रुपए का पेट्रोल 100 रुपए लीटर पड़ रहा है।
पुरानी बस्तियों को तोड़कर इंदौर का हैरिटेज बिगाड़ाजा रहा है। टेक्नीकल एजुकेशन के नाम पर नौजवानों से छल किया जा रहा है। फीस ज्यादा है, लेकिन शिक्षा में गुणवत्ता नहीं है। युवाओं को नौकरी नहीं मिल पाती, कैंपस में कंपनियां नहीं आतीं। युवाओं के सपनों को निराशा में मत बदलो। विज्ञान शिक्षा का बुरा हाल है। हम चाहते हैं कि नौजवानों के सपने ध्वस्त न हों, वरिष्ठजन अनमने न हों। राजनीति का मतलब केवल लच्छेदार भाषण नहीं है। मैं शकल की नहीं अकल की राजनीति इंदौर में प्रारंभ करना चाहता हूं।
इंदौर में छह साल से धारा 144 लगी है, लेकिन कोई भी जनप्रतिनिधि बोलने को तैयार नहीं है। क्या यह अशांत शहर है? 16 लाख वाहनों का धुआं लोगों को बीमार बना रहा है। हमें यह तय करना होगा कि हम अस्त व्यस्त इंदौर चाहते हैं या व्यवस्थित और साफ सुथरा इंदौर चाहते हैं। यह हमारा सबसे बड़ा मुद्दा भी है। निगम के साथ लोगों को भी सुधरना होगा। हम खुद तय करें कि घर कैसे जीरो कचरे पर आए। इंदौर साफ सुथरा हो जाएगा।
यदि मैं सांसद बना या न बना तो भी मैं इन सवालों को ताकत से उठाऊंगा कि स्वच्छ इंदौर कैसे बने, स्वस्थ इंदौर कैसे बने। बेपानी इंदौर को पानीदार कैसे बनाएं, यह आम आदमी पार्टी और अनिल त्रिवेदी के जीवन का उद्देश्य है। हमारा कहना है कि आम आदमी की ताकत बढ़ेगी तो इंदौर की ताकत भी बढ़ेगी ।