तो क्या भगवान राम भी भगोड़े थे..?

विभूति शर्मा
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केजरीवाल की बहुप्रतीक्षित वाराणसी रैली जनता से कथित रूप से ली गई इस राय के साथ संपन्न हो गई कि मुझे वाराणसी से चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं। जनता की ओर से कहा गया कि लड़ना चाहिए और केजरीवाल ने घोषणा कर दी कि तो फिर ठीक है मैं वाराणसी से लड़ने को तैयार हूं। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी तुलना राम और भरत से भी कर ली।

उल्लेखनीय है कि केजरीवाल की राजनीति का केंद्र बिंदु कथित रूप जनता की राय रहती है। जनता की राय के नाम पर वे वह सब कुछ करते हैं जो करना चाहते हैं। हालांकि यह खुला तथ्य है कि इस तरह की रायशुमारी हमेशा ही रहस्यमयी ही रही है। आंकड़ों में इसका खुलासा कभी नहीं हो पाता। केजरीवाल की राजनीति को अभी एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ है। इतने ही समय में वे जनता की राय के नाम पर दिल्ली का चुनाव लड़ चुके, सत्ता भी हासिल कर चुके और फिर उसे छोड़कर भी भाग चुके हैं।

कहने वाले भले ही कहते रहें कि जनता ने तो कभी नहीं कहा कि आप दिल्ली की सत्ता छोड़ दें। सत्ता तो आपने दिल्ली की जनता को पानी बिजली की समस्या से निजात दिलाने के लिए हासिल की थी पहले वह वादा तो पूरा कर देते, लेकिन आप लोकपाल के नाम पर मैदान छोड़ गए अब तोहमत यह लगा रहे हैं कि लोग आपको भगोड़ा कह रहे हैं। यह केजरीवाल का ही दम है कि वे इसमें भी अपनी राह बनाने की कोशिश करने लगे हैं। यह कोशिश उन्होंने धार्मिक नगरी वाराणसी से शुरू की है। भगवान राम को मिले 14 वर्ष के वनवास से इसकी तुलना करते हुए केजरीवाल कहते हैं कि मां कैकयी के कहने पर रामचंद्र जी ने सत्ता का मोह त्यागकर 14 वर्ष के लिए वनवास जाना पसंद किया।

अब यह बात तो समझ में आने ही लगी है कि केजरीवाल सुर्खियों में बने रहने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। शायद जानबूझकर इस तरह के बयान देते हैं कि मीडिया की सुर्खियों में बने रहें। यह वे भलीभांति जानते हैं कि राम के सिंहासन त्यागने और वनवास जाने की तुलना अपनी दिल्ली की सत्ता त्याग करने से करेंगे तो निश्चित ही भाजपा भड़केगी। वह भी वाराणसी जैसी धार्मिक नगरी जहां से भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं।

फिर अगले चुनाव के लिए पैसा कहां से लाएंगे केजरीवाल... पढ़ें अगले पेज पर...




चुनाव के इस माहौल में जनता से जुड़े मुददे तो जैसे नदारद ही होते जा रहे हैं। लगभग सभी पार्टियों ने चुनाव की घोषणा के पूर्व जोर शोर से कहा था कि वे इस बार जनता के सामने भ्रष्टाचार, महंगाई और विकास के मुद्दे लेकर जाएंगे। लेकिन घोषणा के बाद नजारा ही बदल गया है। व्यक्तिगत आलोचनाएं और दलबदल की घटनाएं ही सुर्खियों में नजर आ रही हैं।

अरविंद केजरीवाल से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें थीं कि वे विकास की बात करेंगे और जनता के सामने कुछ ऐसा खाका पेश करेंगे वे देश को किस पथ पर ले जाएंगे। लेकिन उनकी अभी तक की रैलियों में ऐसा कुछ नजर नहीं आया है। उनकी हर रैली के समान वाराणसी में भी उन्होंने मोदी के गुजरात के छद्‍म विकास की दुहाई दी और कांग्रेस भाजपा को एक ही थैली के चट्‍टे बट्‍टे बताया, जो अंबानी अडानी की जेब में हैं। साथ ही कहा कि इन्हें जिताने पर देश का गर्त में जाना अवश्यंभावी है।

एक और तथ्य थोड़ा चौंकाने वाला है। केजरीवाल खम ठोककर कह रहे हैं कि कांग्रेस भाजपा को हराओ और हमें जिताओ, इसके एक साल बाद दोबारा चुनाव होंगे तब देश को ईमानदार सरकार मिलेगी। यानी वे खुले आम दिल्ली विधानसभा के समान देश को जल्दी ही एक और चुनाव की ओर ले जाने की बात कर रहे हैं। अपने चुनाव के लिए चंदा मांगने वाले केजरीवाल क्या यह बताएंगे कि एक साल में दूसरी बार चुनाव का खर्च देश कैसे वहन कर सकेगा?
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