सिद्धारमैया

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सिद्धारमैया का जन्म 12 अगस्त 1948 को मैसूर जिले के सिद्दरामनहुंडी गांव के एक कृषक परिवार में हुआ था। 10 वर्ष की आयु तक उनकी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी।

उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक किया और फिर इसी विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा भी प्राप्त की।

उनक ी पत्‍न ी क ा ना म पार्वती है। उनक े दो पुत्र हैं, राकेश और यतीन्द्र। राकेश ने फिल्मों में कुछ भूमिकाएं की हैं और अपने पिता की मदद करते हैं। वहीं यतीन्द्र एक चिकित्सक हैं। सिद्धारमैया नास्तिक हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ 'भगवान' की बजाए 'सच्चाई' के नाम पर शपथ ली थी।

शुरुआत में सिद्धारमैया ने मैसूर में चिक्कबोरैया के कनिष्ठ के रूप में वकालत सीखी। बाद में कुछ समय के लिए उन्होंने कानून पढ़ाया भी। करीब ढाई दशक तक जनता परिवार के सदस्य रहे सिद्दारमैया घोर कांग्रेस विरोधी के रूप में जाने जाते थे, लेकिन राजनीतिक उतार-चढ़ाव की दिशा ऐसी बदली कि आज वे कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री बन गए।

गरीब किसान परिवार से जुड़े सिद्दारमैया 1980 के दशक से 2005 तक कांग्रेस के धुर विरोधी थे, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की जनता दल (एस) से उनका निष्कासन उन्हें राजनीतिक चौराहे पर ले आया, जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया और फिर कर्नाटक के 22वें मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस में आए उन्हें 7 साल भी पूरे नहीं हुए थे कि उनकी जीवनभर की महत्वाकांक्षा पूरी हो गई, जब उन्होंने कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

2004 में खंडित जनादेश मिलने के बाद कांग्रेस और जद(एस) ने गठबंधन सरकार बनाई। तब सिद्दारमैया जद(एस) में थे और उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया गया था। मुख्यमंत्री का पद कांग्रेस के एन. धरमसिंह को मिला था। सिद्दारमैया को यह शिकायत रही कि उनके सामने मुख्यमंत्री बनने का मौका था, लेकिन देवगौड़ा ने ऐसा नहीं होने दिया।

2005 में उन्होंने खुद को पिछड़ा वर्ग के नेता के तौर पर पेश किया। वे कुरूबा समुदाय से आते हैं, जो कर्नाटक में तीसरी सबसे बड़ी संख्या वाली जाति है, लेकिन इसी दौरान देवगौड़ा के पुत्र एचडी कुमारस्वामी को पार्टी के उभरते सितारे के तौर पर देखा जा रहा थ और सिद्दारमैया भी जद(एस) से बर्खास्‍त कर दिए गए।

कभी जद(एस) की राज्य इकाई के अध्यक्ष रहे सिद्दारमैया के बारे में पार्टी के आलोचकों ने कहा कि देवगौड़ा अब कुमारस्वामी को पार्टी के नेता के तौर पर आगे बढ़ाना चाहते थे इसलिए सिद्दारमैया को बर्खास्‍त किया गया।

पेशे से वकील सिद्दारमैया ने तब कहा कि वे राजनीति से संन्यास लेकर फिर से वकालत करना चाहते हैं। क्षेत्रीय पार्टी बनाने से उन्होंने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वे धनबल नहीं जुटा सकते। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही उन्हें अपने-अपने यहां बुलाने की कोशिश की।

सिद्दारमैया ने कहा कि भाजपा की विचारधारा से वे सहमत नहीं हैं। वर्ष 2006 में वे अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में चले गए। 64 वर्षीय सिद्दारमैया ने मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा कभी नहीं छिपाई। वर्ष 2004 के अलावा 1996 में भी मुख्यमंत्री पद उनसे देखते ही देखते दूर चला गया था।

देवगौड़ा और जेएच पटेल दोनों के ही मुख्यमंत्रित्वकाल में सिद्दारमैया वित्तमंत्री बने और सात बार उन्होंने राज्य का बजट पेश किया। जनता के नेता के तौर पर उभरे सिद्दारमैया ने पिछले सप्ताह कांग्रेस विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री पद के लिए सीधे मुकाबले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री एम मल्लिकार्जुन को पीछे छोड़ा।

जनता परिवार के 'उत्पाद' रहे सिद्दारमैया, डॉ. राममनोहर लोहिया के समाजवाद से इसकदर प्रभावित हुए थे, कि वकालत का पेशा छोड़कर राजनीति में आ गए।

1983 में वे लोकदल पार्टी के टिकट पर मैसूर की चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से निर्वाचित हुए और बाद में सत्तारुढ़ पूर्ववर्ती जनता पार्टी में शामिल हो गए।

वे 'कन्नड़ कावलु समिति' के पहले अध्यक्ष थे। यह समिति रामकृष्ण हेगड़े के मुख्यमंत्रित्‍वकाल में कन्नड़ के आधिकारिक भाषा के तौर पर कार्यान्वयन की निगरानी के लिए बनाई गई थी। बाद में सिद्दारमैया को सेरीकल्चर (रेशम उत्पादन) मंत्री बनाया गया।

दो साल बाद हुए मध्यावधि चुनाव में वे फिर निर्वाचित हुए और हेगड़े सरकार में पशुपालन तथा पशु चिकित्सा मंत्री बनाए गए। सिद्दारमैया 1989 और 1999 का विधानसभा चुनाव हार गए थे। वर्ष 2008 में उन्हें कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस समिति की प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया।

इसी निर्वाचन क्षेत्र से 2013 में उन्होंने फिर चुनाव जीता और 10 मई 2013 को कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता के रूप में निर्वाचित हुए। हालांकि उन्होंने पहले ही घोषणा कर दी थी कि 2013 का विधानसभा चुनाव, उनका अंतिम चुनाव होगा।

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