इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए इस चुनाव में उनके बेटे राजीव गांधी के प्रति सहानुभूति की एक ऐसी आंधी चली कि जीत के सारे कीर्तिमान ध्वस्त हो गए। कांग्रेस ने इतिहास का सर्वाधिक प्रचंड बहुमत हासिल कर सरकार बनाई। 542 में से 425 लोकसभा सीटें कांग्रेस की झोली में आई थीं।
कहानी 1980 से ही तब शुरू हुई, जब इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई थी। करीब 3 साल सत्ता से बाहर रहने और उससे पहले करीब 6 साल तक निरंकुश तौर-तरीकों से सत्ता का संचालन करने के दोनों तजुर्बों से गुजरने के बाद 1980 में इंदिरा गांधी ने चौथी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।
चौथी बार सत्ता संभालने के महज 5 महीने बाद ही उन्हें गहरा झटका लगा, जब उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार हो रहे संजय गांधी की 23 जून 1980 को एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई।
वंशवादी राजनीति की उपज इंदिरा गांधी ने संजय की जगह को भरने के लिए किसी और को नहीं, बल्कि अपने उस बेटे को चुना जिसके मन में राजनीति के प्रति सर्वथा विरक्ति का भाव था। पायलट की नौकरी छोड़कर राजीव गांधी अपनी मां की मदद के लिए राजनीति में आ गए।
संजय की मौत से खाली हुई अमेठी संसदीय सीट पर जून 1981 में उपचुनाव हुआ। इस उपचुनाव में राजीव गांधी कांग्रेस के उम्मीदवार बने और लोकदल के शरद यादव को हराकर लोकसभा में पहुंच गए। इस चुनाव में शरद यादव संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार थे।
8 महीने बाद फरवरी 1983 में उन्हें कांग्रेस का महासचिव भी बना दिया गया। इससे पहले देश में असम और पंजाब के आंदोलन शुरू हो चुके थे। पंजाब में तो खालिस्तानी उग्रवाद इस कदर बढ़ गया था कि पूरे राज्य को सेना के हवाले करना पड़ गया था।
जरनैल सिंह भिंडरांवाला की सरपरस्ती में आतंकवादियों ने स्वर्ण मंदिर परिसर को अपना अड्डा बना लिया था। इस अड्डे को नष्ट करने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को साहसिक फैसला करना पड़ा।
मई 1984 में सेना के ऑपरेशन ब्लू स्टार में भिंडरांवाला मारा गया, लेकिन पवित्र स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्रवाई और उससे अकाल तख्त के क्षतिग्रस्त होने से सिखों की भावनाओं को इस कदर ठेस पहुंची कि 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री के निजी सिख सुरक्षा गार्डों ने प्रधानमंत्री आवास में ही इंदिरा गांधी पर गोलियों की बौछार कर उनकी हत्या कर दी।
समूचे देश में सिख विरोधी हिंसा भड़क उठी। हजारों बेगुनाह सिखों का कत्लेआम हो गया और उनकी अरबों की संपत्ति या तो लूट ली गई या जलाकर खाक कर दी गई।
संजय गांधी की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी की हत्या से कांग्रेस को दूसरा बड़ा झटका लगा। इस झटके से पार्टी को उबारने के लिए मंच पर राजीव गांधी आए। उन्हें कांग्रेस के बड़े-बुजुर्गों ने प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंपने में जरा भी देरी नहीं की।
2 महीने के भीतर ही 1984 का लोकसभा चुनाव हुआ। दिसंबर 1984 में लोकसभा की 542 में 515 सीटों पर ही चुनाव हुए थे। असम की 14 और पंजाब की 13 सीटों पर चुनाव 1 साल बाद सितंबर 1985 में हुए। इन चुनावों में कांग्रेस को 542 में से 415 सीटों पर जीत मिली थी।
इतिहास में पहली बार उसे मिले वोटों का प्रतिशत 50 के करीब पहुंचा। उसे कुल 49.1 प्रतिशत वोट मिले थे। 1980 के चुनाव के बाद जनसंघी खेमे ने जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गठन कर लिया था।
1984-85 का चुनाव उसके लिए पहला चुनाव था जिसमें उसने 224 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे लेकिन उसे महज 2 सीटों पर जीत मिली थी। एक आंध्रप्रदेश से और दो गुजरात से।
आंध्र की हनमकोंडा सीट से पीवी नरसिंहराव को हराकर सी. जंगा रेड्डी और गुजरात की मेहसाणा सीट से एके पटेल जीते थे। भाजपा के लगभग 50 फीसदी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी जबकि उसे प्राप्त वोटों का प्रतिशत 7.74 रहा।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) को इस चुनाव में 22 सीटों के साथ 5.87 फीसदी वोट मिले थे। भारतीय कम्युनिस्ट (भाकपा) 2.71 प्रतिशत वोट पाकर 6 सीटों पर जीती थी।
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