इसका एक अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि वहां के लोग मोदी की कट्टर हिंदूवादी छवि को त्यागकर यह सोचने के लिए प्रेरित हुए हैं या कह सकते हैं कि वे ऐसा सोचने के लिए विवश हुए हैं। पर इसके साथ वे यह सोचने के लिए भी विवश हुए हैं कि भारत जैसे देश में कट्टरवादिता के साथ लोगों का साथ नहीं पाया जा सकता है। यह एक ऐसा देश है जिसे किसी एक धर्म के नाम पर नहीं चलाया जा सकता है।
हालांकि पाकिस्तान में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो कि मोदी को मुस्लिमों का कट्टर दुश्मन समझता है। इस वर्ग में वे लोग भी शामिल हैं जिनसे नीर-क्षीर विवेक कर अपनी राय जाहिर करने की जिम्मेदारी होती है, लेकिन दुख का विषय है कि इन लोगों की राय और मौलाना मसूद अजहर की सोच में कोई अंतर नहीं है। उन्हें अगर कट्टर मुस्लिमवादी कहा जाए तो गलत ना होगा। लेकिन आश्चर्य है कि मोदी को लेकर उन लोगों के विचार नहीं बदले हैं जिन्हें हम बुद्धिजीवी कहते हैं या जो खुद को धर्मनिरपेक्षता के नायक समझते हैं।
हाल में प्रसिद्ध लेखक सलमान रश्दी का एक लेख प्रकाशित हुआ है जिसमें उनका कहना है कि भारत में मुस्लिमों को अभी भी मोदी से डरने की जरूरत है। हालांकि अपने बहुत से भाषणों और अपने संबोधनों में मोदी ने लगातार इस बात पर जोर दिया है कि वे 125 करोड़ देशवासियों के बारे में सोचते हैं। इससे पहले भी वे जब गुजरात के बारे में बोलते थे तो अल्पसंख्यक या बहुसंख्यकों के स्थान पर पांच करोड़ गुजरातियों की बात करते रहे हैं।
इस तरह ऐसा लग रहा है कि भारत की भावी सरकार विदेश नीति के क्षेत्र में जिस गम्भीर समस्या का सामना कर सकती थी, वह समस्या अब दूर हो गई है। पर पाकिस्तान का मूड बदल जाने का मतलब यह नहीं है कि दुनिया के सभी देशों ने इस बात को स्वीकार लिया है कि मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन सकते हैं।
पिछले महीने ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति सलाहकार सरताज अजीज ने यह बात बताई थी कि पाकिस्तान की सरकार नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने से चिंतित नहीं है। यानी तब तक उन्हें मोदी के प्रधानमंत्री बनने से चिंता हो रही होगी और जहां तक सरताज अजीज की बात है तो उन्हें पाकिस्तान का भावी विदेशमंत्री माना जा सकता है क्योंकि पाकिस्तान में विदेश विभाग प्रधानमंत्री नवाज शरीप के ही पास है और वे जब भी चाहें अजीज को अपना विदेश मंत्री बना सकते हैं।
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