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कहते हैं एक बार राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी लंदन जा रहे थे। बातों ही बातों में इनका परिचय एक अँगरेज युवक से हो गया। जब अँगरेज को पता चला तो उनके साथ वह बड़ी बेहूदगी से पेश आया।

उस अँगरेज युवक ने दोपहर को गाँधीजी पर एक व्यंग्यपूर्ण कविता रची और लिफाफे में बंद कर वह कविता गाँधीजी को दे आया। गाँधीजी ने उस अँगरेज से कविता लेकर बिना पढ़े ही उसे रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिया। गाँधीजी ने उसमें लगी आलपिन निकाल ली।

गाँधीजी की यह हरकत देखकर उस अँगरेज युवक को बड़ा क्रोध आया और कहने लगा- 'कृपया आप यह कविता पढ़ें और देखें कि इसमें कोई सार है अथवा नहीं।'
  कहते हैं एक बार राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी लंदन जा रहे थे। बातों ही बातों में इनका परिचय एक अँगरेज युवक से हो गया। जब अँगरेज को पता चला तो उनके साथ वह बड़ी बेहूदगी से पेश आया।      


यह सुनकर गाँधीजी ने आलपिन वाली डिबिया खोली और उसमें से आलपिन निकालकर दिखाते हुए बोले, ' आपकी कविता में केवल यही सार था, जो मैंने निकालकर रख लिया है।'

वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने गाँधीजी की इस बात पर जोरों से ठहका लगाया और वह अँगरेज खिसियाकर रह गया और अनमने मन से चलता बना।

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