17 जून को विश्व कराटे दिवस है। इस दिवस को वर्ल्ड कराटे फेडरेशन ने 20217 टोक्यो 2020 ओलंपिक खेलों के खेल में शामिल करने के लिए बनाया था। 2016 में यह घोषणा की गई थी कि कराटे ओलंपिक कार्यक्रम में शामिल होने वाले पांच नए खेलों में से एक होगा। 70 के दशक से ही इस खेल को ओलंपिक के खेलों में शामिल करने का प्रयास जारी रहा है।
1970 में पहली कराटे विश्व चैंपियनशिप मेजबानी करने के सालों बाद, निप्पॉन बुडोकन को मार्शल आर्ट का आध्यात्मिक घर माना जाने लगा। निप्पॉन बुडकन का उद्घाटन 1964 में ओलंपिक खेलों के लिए किया गया था जहां के पार्क में लगभग 15000 लोगों को एक साथ बैठाया जा सकता था।
कहते हैं कि कराटे का जन्म रयूक्यू साम्राट (Ryukyu-1429 1879) के दौरान ओकिनावा (okinawa) द्वीप पर हुई थीस उस दौरान इस खेल को सैनिकों की अत्मरक्षा के लिए सिखाया जाता था। 1920 में इस खेल को जापान के आमजनों में पेश किया गया और 1950 के दशक में इसे विश्वविद्यालय के छात्रों को प्रशिक्षक किया जाने लगा। यहीं से जापानी शिक्षकों द्वारा इस खेल को पूरी दिनया में प्रचारित किया गया और फिर इसे विश्व स्तर पर स्थापित करने के लिए 2018 में एवं 2020 टोक्यो ओलंपिक में शामिल शामिल किया गया।
भारतीय मान्यताओं के अनुसार कराटे और मार्शल आर्ट की उत्पत्ति का मूल दक्षिण भारत को माना जाता है। यह योग का ही एक अंग है। दुनिया के महान भिक्षुओं में से एक बोधी धर्मन ने इस विद्या को सबसे पहले चीन को सिखाया और बाद में यही से यह जापान और अन्य बौद्ध राष्ट्रों में गया। बोधिधर्म आयुर्वेद, सम्मोहन, मार्शल आर्ट और पंच तत्वों को काबू में करने की विद्या जानते थे। दक्षिण भारत में इस विद्या के प्रथम शिक्षक महर्षि अगस्त्य मुनी थे।
पुराणों के अनुसार, महर्षि अगस्त्य और भगवान परशुराम ने धरती को सबसे पहले मार्शल आर्ट प्रदान किया। महर्षि अगस्त्य ने दक्षिणी कलारिप्पयतु (बिना शस्त्र के लड़ना) और परशुराम ने शस्त्र युक्त कलारिप्पयतु का विकास किया था। भगवान श्रीकृष्ण दोनों ही तरह के विद्या में पारंगत थे। उन्होंने इस विद्या को और अच्छे से विकसित किया और इसको एक नया आयाम दिया। इसे कलारिप्पयतु, कलारीपयट्टू या कालारिपयट्टू (kalaripayattu) कहा जाता है।
श्रीकृष्ण ने इस विद्या के माध्यम से ही उन्होंने चाणूर और मुष्टिक जैसे मल्लों का वध किया था तब उनकी उम्र 16 वर्ष की थी। मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया था। जनश्रुतियों के अनुसार श्रीकृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था। डांडिया रास उसी का एक नृत्य रूप है। कालारिपयट्टू विद्या के प्रथम आचार्य श्रीकृष्ण को ही माना जाता है। हालांकि इसके बाद इस विद्या को अगस्त्य मुनि ने प्रचारित किया था।
इस विद्या के कारण ही 'नारायणी सेना' भारत की सबसे भयंकर प्रहारक सेना बन गई थी। श्रीकृष्ण ने ही कलारिपट्टू की नींव रखी, जो बाद में बोधिधर्मन से होते हुए आधुनिक मार्शल आर्ट में विकसित हुई। बोधिधर्मन के कारण ही यह विद्या चीन, जापान आदि बौद्ध राष्ट्रों में खूब फली-फूली। आज भी यह विद्या केरल और कर्नाटक में प्रचलित है।
श्रीकृष्ण ने इस विद्या को अपनी 'नारायणी सेना' को सीखा रखा था। डांडिया रास इसी का एक रूप है। मार्शल आर्ट के कारण उस काल में 'नारायणी सेना' को भारत की सबसे भयंकर प्रहारक माना जाता था।