हम दो आंखों से जो-जो रंग-रूप, वस्तु, जीव और पेड़-पौधे देख सकते हैं, वे सब एक आंख से भी देख सकते हैं। तब प्रकृति ने हमें दो आंखें क्यों दी हैं? इसका एक उत्तर तो यह हो सकता है कि ज्यादातर आवश्यक अंग- कान, गुर्दे, फेफड़े, हाथ, पैर 2-2 इसिलए हैं कि एक के खराब होने पर भी दूसरा काम करता रहे, पर आंख के मामले में केवल यह अकेला उत्तर नहीं है।
दो आंखों से जो दिखता है, वह वही नहीं है, जो एक आंख से दिखता है। अंतर जानने के लिए एक प्रयोग करते हैं। अपने दोनों हाथ में 1-1 पेंसिल लो। एक हाथ में पेंसिल उलटी पकड़ लो। दोनों हाथ दूर-दूर फैला लो। अब हाथ पास-पास लाओ ताकि दोनों पेंसिलों की नोकें आमने-सामने (एक-दूसरे के ऊपर) तो हों, पर एक-दूसरे को छुए नहीं।
फिर से हाथ दूर-दूर ले जाओ। अब एक आंख बंद कर लो और पहले की तरह ही दोनों हाथ पास में लाओ। जब लगे कि नोकें एक-दूसरे के ऊपर आ गई हैं (नोकें एक-दूसरे को छुए नहीं), तब रुक जाओ। अब आंख खोल दो। तुम्हें आश्चर्य होगा कि एक आंख से देखने से जो नोकें एक-दूसरे के ठीक ऊपर लग रही थीं, दूसरी आंख खोलने पर दिखता है कि वे एक-दूसरे के ठीक ऊपर नहीं हैं, बल्कि उनके बीच दूरी हैं।
इससे यह नतीजा निकलता है कि दो चीजों के बीच की असली दूरी हमें दो आंखों से ही पता चलती है, एक से नहीं। दूसरे शब्दों में, एक आंख लंबाई-चौड़ाई (दो आयाम) की जानकारी देती है, गहराई (तीसरे आयाम) की जानकारी दूसरी आंख से मिलती है।
इसीलिए थी-डी (त्रि-आयामी) फिल्मों की शूटिंग एक नहीं, बल्कि एकसाथ दो कैमरों से की जाती है। थी-डी फिल्म को परदे पर दिखाया भी 2-2 प्रोजेक्टरों से जाता है। एक विशेष फिल्टर चश्मा पहनने से दाईं आंख को केवल दाएं कैमरे द्वारा खींचा दृश्य ही दिखता है। इस तरह आंखों को गहराई का आभास होता है।
अब एक सवाल तारे हमें ऐसे क्यों दिखाई देते हैं, मानो एक ही परदे पर सब टंके हुए हैं? दो आंखों से देखने पर भी उनके बीच की गहराई का बोध हमें क्यों नहीं होता? इसका जवाब है- तारे धरती से इतनी दूर हैं कि हमारी दूसरी आंख तो तारों के बीच की गहराई का अंदाज लगाने में असमर्थ रहती है।