ग़ालिब का ख़त-26

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Aziz AnsariWD
आदाब बजा लाता हूँ। बहुत दिन से आपका ख़त नहीं आया। बेगम में मेरा ध्यान लगा हुआ है। आप अक्सर मुझको भूल जाते हैं और जब मेरी तरफ़ से मेरी शिकायत शुरू होती है, तो हज़रत रजूह ब-अदालत-ए-फ़ौजदारी करते हैं और कसरत-ए-अशग़ाल-ए-सरकारी को दस्तावेज़-ए-उज़र बनाते हैं। बहरहाल, इतना तो भूलना मुनासिब नहीं। हर हफ़्ते में एक ख़त आपका और एक ख़त मेरा आता-जाता रहे। इन दिनों में ब-सबब-ए-ईद के क़सीदे की ‍फ़िक्र के मुझक फुर्सत-ए-तहरीर नहीं मिली। क़सीदे जब छापा होकर आएँगे, तो मुआफ़िक़-मामूल आपकी ख़िदमत में इरसाल करूँगा।

मेरे एक दोस्त हैं। उन्होंने एक रुपया मुझक दिया है और यह चाहा कि मैं वह रुपया आपके पास भेजूँ और आप अपने भाई साहिब के पास हाथरस भेज दें, और वह एक रुपए के चाकू, जैसे कि वहाँ बनते हैं, बहुत ताकीद कराकर और फ़रमाइशी तोहफ़ा बनवाकर आपको भेज दें। मैं हैरान था कि रुपया आप तक क्योंकर पहुँचे। बारे मिर्जा़ साहिब आज आ गए और उन्होंने कहा कि मैं कल कोल जाऊँगा।

मैंने यह ख़त लिखकर मय रुपए के उनको दे दिया। मेहरबानी फ़रमाकर हाथरस भेजिए और ताकीद लिखिए कि बहुत अच्छे चाकू जितने आवें, मगर ऐसे कि उनसे बेहतर न हों, बनवाकर भेज दें, जल्द। वस्सलाम।

  मुंशी अब्दुल लतीफ़ को दुआ पहुँचे। बेगम को और नसीरुद्दीन और अ़ब्दुल सलाम को दुआ पहुँचे। जनाब मीर तालिब अ़ली छोलस के रईस, कि जो हैदराबाद के रिसाले में ज़ुल्फकार अ़ली बेग रिसालदार की रिफ़ाकत में मुदर्रिस-ए-रसाला हैं।      
मुंशी अब्दुल लतीफ़ को दुआ पहुँचे। बेगम को और नसीरुद्दीन और अ़ब्दुल सलाम को दुआ पहुँचे। जनाब मीर तालिब अ़ली छोलस के रईस, कि जो हैदराबाद के रिसाले में ज़ुल्फकार अ़ली बेग रिसालदार की रिफ़ाकत में मुदर्रिस-ए-रसाला हैं, वे अपने को आपके वालिद माजिद का आश्ना बताते हैं और आपको सलाम कहते हैं।

हक़ तआ़ला, तुमको ख़ुश व ख़ुरम-ओ-तंदुरुस्त, तुम्हारी औलाद के सर परा सलामत रखे और तुम उनका बुढ़ापा देखो और उनके बच्चों को खिलाओ। मुंशी हरगोविंद सिंह आए और उनके बच्चों को खिलाओ। मुंशी हरगोविंद सिंह आए और बेगम का मुझे पयाम दिया कि चच्चा मैंने कान छिदवा लिए हैं। सो तुम मेरी तरफ़ से उसको दुआ कहना और कहना कि तुमको मुबारक हो और तुमक ज़मुर्रुद और याकूत के पत्ते, बालियाँ पहननी नसीब हों।

जुलाई 1851 ई.

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