ग़ालिब का ख़त-45

Webdunia
WDWD
अंदोह-ए- फ़िराक़ ने वो फ़शार दिया कि जौहर-ए-रूह गुदाज़ पाकर हर बुन-ए-मू से टपक गया। अगर आपके इक़बाल की ताईद न होती, तो दिल्ली तक मेरा‍ ज़िंदा पहुँचना मुहाल था।

जाड़ा, मेह, कब्ज़-ओ-इनक़िबाज़, फुक़दान-ए-जूअ, फ़ाक़ाहाए मुतवातिर, मंजिलहाए नामानूस, हापुड तक आफ़ताब का नजर न आनाल शब-ओ-रोज़ हवाए ज़महरीर का जांगुज़ा रहना, बारे हापुड़ से चलकर नय्यर-ए-आज़म की सूरत दिखाई दी। धूप खाता हुआ दिल्ली पहुँचा। एक हफ़्ता कोफ़्ता-ओ-रंजूर रहा। अब वैसा पीर व नातवान हूँ, जैसा कि इस सफ़र से पहले था ख़ुदा वो दिन करे कि फिर उस दर पर पहुँचुँ -

तुम सलामत रहो हज़ार बरस।
हर बरस के हों दिन पचास हज़ार।

निजात का तालिब,
ग़ालिब

21 जनवरी 1866

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

क्या होता है DNA टेस्ट, जिससे अहमदाबाद हादसे में होगी झुलसे शवों की पहचान, क्या आग लगने के बाद भी बचता है DNA?

क्या होता है फ्लाइट का DFDR? क्या इस बॉक्स में छुपा होता है हवाई हादसों का रहस्य

खाली पेट ये 6 फूड्स खाने से नेचुरली स्टेबल होगा आपका ब्लड शुगर लेवल

कैंसर से बचाते हैं ये 5 सबसे सस्ते फूड, रोज की डाइट में करें शामिल

विवाह करने के पहले कर लें ये 10 काम तो सुखी रहेगा वैवाहिक जीवन

सभी देखें

नवीनतम

हनुमंत सदा सहायते... पढ़िए भक्तिभाव से भरे हनुमान जी पर शक्तिशाली कोट्स

21 जून योग दिवस 2025: अनुलोम विलोम प्राणायाम करने के 10 फायदे

मातृ दिवस और पितृ दिवस: कैलेंडर पर टंगे शब्द

हिन्दी कविता : पिता, एक अनकहा संवाद