महाराज, आपका मेहरबानीनामा पहुँचा। दिल मेरा अगर्चे खुश न हुआ, लेकिन नाखुश भी न रहा। बहरहाल, मुझको कि नालायक़ व ज़लीलतरीन ख़लनायक़ हूँ, अपना दुआग़ो समझते रहो। क्या करूँ? अपना शेवा तर्क नहीं किया जाता। वह रविश हिंदुस्तानी फ़ारसी लिखने वालों की मुझको नहीं आती कि बिल्कुल भाटों की तरह बकना शुरू करें। मेरे क़सीदे देखो, तशबीब के शेर बहत पाओगे, और मदह के शेर कमतर। नस्र में भी यही हाल है।
Aziz Ansari
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नवाब मुस्तफ़ा ख़ाँ के तज़करे की तक़रीज़ को मुलाहिज़ा करो कि उनकी मदह कितनी है। मिर्जा रहीमुद्दीन बहादुर हया तख़ल्लुस के दीवान के दीबाचा को देखो। वह जो तक़रीज़ 'दीवान-ए-हाफिज़' की बमूजिब फ़रमाइश जान जाकोब बहादुर के लिखी है, उसके देखो कि फ़क़त एक बैत में उनका नाम और उनकी मदह आई है और बाक़ी सारी नस्र में कुछ और ही मतालिब हैं।
वल्लाह बिल्लाह, अगर किसी शहज़ादे या अमीरज़ादे के दीवान का दीबाचा लिखता, तो उसकी इतनी मदह न करता जितनी तुम्हारी मदह की है। हमको और हमारी रविश अगर पहचानते, तो इतनी मदह को बहुत जानते। किस्सा मुख्तसर तुम्हारी ख़ातिर की और एक फि़क़रा तुम्हारे नाम का बदलकर उसके इवज़ एक फ़िक़रा और लिख दिया है।
इससे ज्यादा भई, मेरी रविश नहीं। ज़ाहिरा तुम खुद फिक्र नहीं करते, और हज़रात के बहकाने में आ जाते हो। वह साहिब तो बेशतर इस नज्म व नस्र को मोहमल कहेंगे। किस वास्ते कि उनके कान इस आवाज़ से आशना नहीं। जो लोग कि क़तील को अच्छे लिखने वालों में जानेंगे, वह नज्म व नस्र की खूबी को क्या पहचानेंगे?
जो ग़िज़ा खाया करते हैं, खाया करें। पानी दिन-रात, जब प्यास लगे, यही पिएँ। तबरीद की हाजत पड़े, इसी पानी में पिएँ। रोज जोश करवाकर, छनवाकर रख छोड़ें। बरस दिन में इसका फ़ायदा मालूम होगा। मेरा सलाम कहकर यह नुस्ख़ा अर्ज कर देना। आगे उनको इख्तियार है।
हमारे शफ़ीक़ मुंशी नबी बख्श साहिब को क्या आरिज़ा है कि जिसको तुम लिखते हो, माअ़जनब से भी न गया। एक नुस्ख़ा 'तिब़-ए-मुहम्मद हुस्सैन ख़ानी' में लिखा है और वह बहुत बेज़रर और बहुत सूदमंद है, मगर असर उसका देर में ज़ाहिर होता है। वह नुस्खा यह है कि पान सात सेर पानी ल ेवें और उसमें सेर पीछे तोला-भर चोब चीनी कूटकर मिला दें।
और उसको जोश करें, इस कद्र कि चहारम पानी जल जावे। फिर उस बाक़ी पानी को छानकर कोरी ठलिया में भर रखें। और जब बासी हो जावे, उसको पिएँ।
जो ग़िज़ा खाया करते हैं, खाया करें। पानी दिन-रात, जब प्यास लगे, यही पिएँ। तबरीद की हाजत पड़े, इसी पानी में पिएँ। रोज जोश करवाकर, छनवाकर रख छोड़ें। बरस दिन में इसका फ़ायदा मालूम होगा। मेरा सलाम कहकर यह नुस्ख़ा अर्ज कर देना। आगे उनको इख्तियार है। अगस्त सन् 1849 ई.