जज्बे की जीत

जज्बे की जीत
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कुछ करने का जज्बा हो तो परिस्थितियाँ भी आपको सलाम करती हैं। कड़ी मेहनत और सही मार्गदर्शन मिले तो आदमी फर्श से अर्श पर पहुँच सकता है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है मोहन अवसारी ने। मजदूरी कर अपने घर की आर्थिक सहायता करने वाला मोहन मप्र लोक सेवा आयोग में चयनित हुआ है। अपने श्रमिक पिता के सपनों को साकार करने वाला मोहन सहायक वाणिज्यिक कर अधिकारी बनने जा रहा है।

बचपन से ही था जज्बा
मोहन के परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। अभाव ने उसे बहुत कुछ सिखाया और स्कूल की पढ़ाई के समय ही उसने तय किया कि वह एक आला अधिकारी बनकर दिखाएगा। मूलतः खरगोन जिले का रहने वाला मोहन 2003 में कॉलेज की पढ़ाई के लिए इंदौर आया था।

ग्रेजुएशन की पढ़ाई के साथ ही उसने पीएससी की तैयारी शुरू कर दी थी। पढ़ाई के पैसों के लिए मोहन ने घरवालों को परेशान नहीं किया और खुद कमाई की।

किताबों के लिए उठाई तगारी
अपनी पढ़ाई के दौरान कॉलेज, किताबों के लिए पैसे और रहने-खाने का खर्च निकालने के लिए मोहन ने इंदौर में मजदूरी तक की। वे बताते हैं कि उनके पास किताबों के लिए पैसे नहीं बचते थे। इसलिए खाली समय में मजदूरी की। यही नहीं, एक भवन निर्माण कार्य के दौरान तगारी तक उठाई। दिन में काम करने के बाद मोहन रात किताबों के साथ बिताता था। 2009 में उसने एमए लोक प्रशासन की डिग्री हासिल की।

पटवारी के लिए चयन
पढ़ाई के साथ-साथ मोहन ने प्रतिस्पर्धी परीक्षाएँ भी देना शुरू की। उसे पहली सफलता संविद शिक्षक वर्ग-2 परीक्षा में मिली। इसके बाद मोहन पटवारी परीक्षा में चयनित हुए, मगर उसके सपने बड़े थे और उसने पीएससी की तैयारी जारी रखी। 2007 में उसने पीएससी प्रारंभिक परीक्षा में सफलता हासिल की थी, मगर मुख्य परीक्षा में उन्हें निराश होना पड़ा।

जी-तोड़ मेहनत का फल
2007 में मिली असफलता ने मोहन को निराश तो किया, मगर उसके इरादे पक्के थे। उसने हार नहीं मानी और 2008 के लिए दिन-रात एक कर दिए। प्रारंभिक परीक्षा के बाद इस मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू के लिए भी मोहन चयनित हुए। जब परिणाम आया तो उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे। आखिरकार उसका चयन बतौर सहायक वाणिज्यिक कर अधिकारी के रूप में हुआ है।

मुश्किल समय में दोस्तों ने थामा हाथ
मोहन बताते हैं कि पढ़ाई के दौरान कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। ऐसे कई मौके आए, जब दोस्तों ने सहायता की। मोहन सबका शुक्रिया अदा करते हैं। मोहन के घरवाले आज भी खरगोन जिले के एक छोटे से ग्राम काक्षीकुआँ में खेती कर रहे हैं। मोहन के पिता अपने बेटे की इस सफलता पर गौरवान्वित हैं और गाँवों के लोगों के साथ उसकी बात करते नहीं थकते।

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