आँधियाँ चाहे उठा ओ, बिजलियाँ चाहे गिरा ओ, जल गया है दीप तो अँधियार ढलकर ही रहेगा ।
रोशनी पूँजी नहीं ह ै, जो तिजोरी में समा ए, वह खिलौना भी न, जिसका दाम हर ग्राहक लगा ए, वह पसीने की हँसी ह ै, वह शहीदों की उमर ह ै, जो नया सूरज उगाए जब तड़पकर तिलमिला ए, उग रही लौ को न टोक ो, ज्योति के रथ को न रोक ो, यह सुबह का दूत हर तम को निगलकर ही रहेगा । जल गया है दीप तो अँधियार ढलकर ही रहेगा ।
दीप कैसा ह ो, कहीं ह ो, सूर्य का अवतार है व ह, धूप में कुछ भी न, तम में किन्तु पहरेदार है व ह, दूर से तो एक ही बस फूँक का वह है तमाश ा, देह से छू जाए तो फिर विप्लवी अंगार है व ह, व्यर्थ है दीवार गढ़न ा, लाख-लाख किवाड़ जड़न ा, मृतिका के हाथ में अमृत मचलकर ही रहेगा । जल गया है दीप तो अँधियार ढलकर ही रहेगा ।
है जवानी तो हवा हर एक घूँघट खोलती ह ै, टोक दो तो आँधियों की बोलियों में बोलती ह ै, वह नहीं कानून जान े, वह नहीं प्रतिबन्ध मान े, वह पहाड़ों पर बदलियों-सी उछलती डोलती ह ै, जाल चाँदी का लपेट ो, खून का सौदा समेंट ो, आदमी हर कैद से बाहर निकलकर ही रहेगा । जल गया है दीप तो अँधियार ढलकर ही रहेगा ।
वक्त को जिसने नहीं समझा उसे मिटना पड़ा ह ै, बच गया तलवार से तो फूल से कटना पड़ा ह ै, क्यों न कितनी ही बड़ी ह ो, क्यों न कितनी ही कठिन ह ो, हर नदी की राह से चट्टान को हटना पड़ा ह ै, उस सुबह से सन्धि कर ल ो, हर किरन की माँग भर ल ो, है जगा इन्सान तो मौसम बदलकर ही रहेगा । जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।