तुमने कितनी निर्दयता की

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- नीर ज

ND
तुमने कितनी निर्दयता की !

सम्मुख फैला कर मधु-साग र,
मानस में भर कर प्यास अम र,
मेरी इस कोमल गर्दन पर रख पत्थर का गुरु भार दिया ।
तुमने कितनी निर्दयता की !

अरमान सभी उर के कुचल े,
निर्मम कर से छाले मसल े,
फिर भी आँसू के घूँघट से हँसने का ही अधिकार दिया ।
तुमने कितनी निर्दयता की !

जग का कटु से कटुतम बन्ध न,
बाँधा मेरा तन-मन यौव न,
फिर भी इस छोटे से मन में निस्सीम प्यार उपहार दिया ।
तुमने कितनी निर्दयता की !

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