तुम दिवाली बनकर जग का तम दूर कर ो, मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊँगा !
सूनी है माँग निशा की चँदा उगा नही ं हर द्वार पड़ा खामोश सबेरा रूठ गय ा, है गगन विक ल, आ गया सितारों का पतझ र तम ऎसा है कि उजाले का दिल टूट गय ा, तुम जाओ घर-घर दीपक बनकर मुस्का ओ मैं भाल-भाल पर कुमकुम बन लग जाऊँगा !
तुम दिवाली बनकर जग का तम दूर कर ो, मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊँगा !
कर रहा नृत्य विध्वं स, सृजन के थके चर ण, संस्कृति की इति हो रह ी, क्रुद्व हैं दुर्वास ा, बिक रही द्रौपदी नग्न खड़ी चौराहे प र, पढ़ रहा किन्तु साहित्य सितारों की भाष ा, तुम गाकर दीपक राग जगा दो मुर्दों क ो मैं जीवित को जीने का अर्थ बताऊँगा !
तुम दिवाली बनकर जग का तम दूर कर ो, मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊँगा !
इस कदर बढ़ रही है बेबसी बहारों क ी फूलों को मुस्काना तक मना हो गया ह ै, इस तरह हो रही है पशुता की पशु-क्रीड़ ा लगता है दुनिया से इन्सान खो गया ह ै, तुम जाओ भटकों को रास्ता बता आ ओ मैं इतिहास को नए सफे दे जाऊँगा !
तुम दिवाली बनकर जग का तम दूर कर ो, मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊँगा !
मैं देख रहा नन्दन सी चन्दन बगिया मे ं, रक्त के बीज फिर बोने की तैयारी ह ै, मैं देख रहा परिमल पराग की छाया मे ं उड़ कर आ बैठी फिर कोई चिन्गारी ह ै, पीने को यह सब आग बनो यदि तुम साव न मैं तलवारों से मेंघ-मल्हार गवाऊँगा !
तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर कर ो, मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊँगा !
जब खेल रही है सारी धरती लहरों स े तब कब तक तट पर अपना रहना सम्भव है ! संसार जल रहा है जब दु:ख की ज्वाला मे ं तब कैसे अपने सुख को सहना सम्भव है ! मिटते मानव और मानवता की रक्षा मे ं प्रिय ! तुम भी मिट जान ा, मैं भी मिट जाऊँगा !
तुम दिवाली बनकर जग का तम दूर कर ो, मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊँगा !