पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनार े इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन मे ं
हुई दोस्ती ऐसी दु:ख से हर मुश्किल बन गई रुबा ई, इतना प्यार जलन कर बैठ ी क्वाँरी ही मर गई जुन्हा ई, बगिया में न पपीहा बोल ा, द्वार न कोई उतरा डोल ा, सारा दिन कट गया बीनते काँटे उलझे हुए बसन में । पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनार े इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन मे ं
कहीं चुरा ले चोर न को ई दर्द तुम्हार ा, याद तुम्हार ी, इसीलिए जगकर जीवन-भ र आँसू ने की पहरेदार ी, बरखा गई सुने बिन वंशी औ' मधुमास रहा निरवंश ी, गुजर गई हर ऋतु ज्यों कोई भिक्षुक दम तोड़े दे विजन में । पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनार े इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन मे ं
घट भरने को छलके पनघ ट सेज सजाने दौड़ी कलिया ँ, पर तेरी तलाश में पीछ े छूट गई सब रस की गलिया ँ, सपने खेल न पाए होल ी, अरमानों के लगी न रोल ी, बचपन झुलस गया पतझर मे ं, यौवन भीग गया सावन में । पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनार े इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन मे ं
मिट्टी तक तो रुंदकर जग में कंकड़ से बन गई खिलौन ा, पर हर चोट ब्याह करके भ ी मेरा सूना रहा बिछौन ा, नहीं कहीं से पाती आ ई, नहीं कहीं से मिली बधा ई सूनी ही रह गई डाल इस इतने फूलों भरे चमन में । पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनार े इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन मे ं
तुम ही हो वो जिसकी खाति र निशि-दिन घूम रही यह तकल ी तुम ही यदि न मिले तो है स ब व्यर्थ कताई असली-नकल ी, अब तो और न देर लगा ओ, चाहे किसी रूप में आ ओ, एक सूत-भर की दूरी है बस दामन में और कफन में । पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनार े इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में