पीर मेरी, प्यार बन जा !

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- नीर ज

ND
पीर मेर ी, प्यार बन जा !

लुट गया सर्वस् व, जीव न,
है बना बस पाप-सा ध न,
रे हृद य, मधु-कोष अक्ष य,
अब अनल-अंगार बन जा !
पीर मेर ी, प्यार बन जा !

अस्थि-पंजर से लिपटक र,
क्यों तड़पता आह भर-भ र,
चिर विधुर मेरे विकल उ र,
जल अरे ज ल, छार बन जा !
पीर मेर ी, प्यार बन जा !

क्यों जलाती व्यर्थ मुझको !
क्यों रुलाती व्यर्थ मुझको !
क्यों चलाती व्यर्थ मुझको !
री अमर मरु-प्या स, मेरी
मृत्यु ही साकार बन जा !
पीर मेर ी, प्यार बन जा !

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