प्रेम का न दान दो

Webdunia
- नीर ज

ND
प्रेम को न दान द ो, न दो दय ा,
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है ।

प्रेम है कि ज्योति-स्नेह एक ह ै,
प्रेम है कि प्राण-देह एक ह ै,
प्रेम है कि विश्व गेह एक ह ै,

प्रेमहीन गत ि, प्रगति विरुद्ध है ।
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है ॥

प्रेम है इसीलिए दलित दनु ज,
प्रेम है इसीलिए विजित दनु ज,
प्रेम है इसीलिए अजित मनु ज,

प्रेम के बिना विकास वृद्ध है ।
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है ॥

नित्य व्रत करे नित्य तप कर े,
नित्य वेद-पाठ नित्य जप कर े,
नित्य गंग-धार में तिरे-तर े,

प्रेम जो न तो मनुज अशुद्ध है ।
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥

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