बूढ़े अंबर से माँगो मत पान ी मत टेरो भिक्षुक को कहकर दान ी धरती की तपन न हुई अगर कम त ो सावन का मौसम आ ही जाएग ा
मिट्टी का तिल-तिलकर जलना ही त ो उसका कंकड़ से कंचन होना ह ै जलना है नहीं अगर जीवन में त ो जीवन मरीज का एक बिछौना ह ै अंगारों को मनमानी करने द ो लपटों को हर शैतानी करने द ो समझौता न कर लिया गर पतझर स े आँगन फूलों से छा ही जाएगा । बूढ़े अंबर से...
वे ही मौसम को गीत बनाते ज ो मिज़राब पहनते हैं विपदाओं क ी हर ख़ुशी उन्हीं को दिल देती है ज ो पी जाते हर नाख़ुशी हवाओं क ी चिंता क्या जो टूटा हर सपना ह ै परवाह नहीं जो विश्व न अपना ह ै तुम ज़रा बाँसुरी में स्वर फूँको त ो पपीहा दरवाजे गा ही जाएगा । बूढ़े अंबर से...
जो ऋतुओं की तक़दीर बदलते है ं वे कुछ-कुछ मिलते हैं वीरानों स े दिल तो उनके होते हैं शबनम क े सीने उनके बनते चट्टानों स े हर सुख को हरजाई बन जाने द ो, हर दु:ख को परछाई बन जाने द ो, यदि ओढ़ लिया तुमने ख़ुद शीश कफ़ न, क़ातिल का दिल घबरा ही जाएगा । बूढ़े अंबर से...
दुनिया क्या ह ै, मौसम की खिड़की प र सपनों की चमकीली-सी चिलमन ह ै, परदा गिर जाए तो निशि ही निशि ह ै परदा उठ जाए तो दिन ही दिन ह ै, मन के कमरों के दरवाज़े खोल ो कुछ धूप और कुछ आँधी में डोल ो शरमाए पाँव न यदि कुछ काँटों स े बेशरम समय शरमा ही जाएगा । बूढ़े अंबर से...