दो गुलाब के फूल छू गए जब से होठ अपावन मेर े ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुबन लगता है ।
रोम-रोम में खिले चमेल ी साँस-साँस में महके बेल ा, पोर-पोर से झरे मालत ी अँग-अँग जुड़े जुही का मेल ा पग-पग लहरे मानसरोव र, डगर-डगर छाया कदम्ब क ी तुम जब से मिल गए उमर का खँडहर राजभवन लगता है । दो गुलाब के फूल....
छिन-छिन ऐसा लगे कि को ई बिना रंग के खेले होल ी, यूँ मदमाएँ प्राण कि जैस े नई बहू की चंदन डोल ी जेठ लगे सावन मनभावन और दुपहरी साँझ बसंत ी ऐसा मौसम फिरा धूल का ढेला एक रतन लगता है । दो गुलाब के फूल....
जाने क्या हो गया कि हरद म बिना दिए के रहे उजाल ा, चमके टाट बिछावन जैस े तारों वाला नील दुशाल ा हस्तामलक हुए सुख सारे दु:ख के ऐसे ढहे कगार े व्यंग्य-वचन लगता था जो कल वह अब अभिनन्दन लगता है । दो गुलाब के फूल....
तुम्हें चूमने का गुनाह क र ऐसा पुण्य कर गई माट ी जनम-जनम के लिए हर ी हो गई प्राण की बंजर घाट ी पाप-पुण्य की बात न छेड़ों स्वर्ग-नर्क की करो न चर्च ा याद किसी की मन में हो तो मगहर वृन्दावन लगता है । दो गुलाब के फूल....
तुम्हें देख क्या लिया कि को ई सूरत दिखती नहीं परा ई तुमने क्या छू दिय ा, बन ग ई महाकाव्य कोई चौपा ई कौन करे अब मठ में पूज ा, कौन फिराए हाथ सुमरिन ी जीना हमें भजन लगता ह ै, मरना हमें हवन लगता है । दो गुलाब के फूल...