एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के ! साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !
बाँसुरी से बिछुड़ जो गया स्वर उस े भर लिया कंठ में शून्य आकाश न े, डाल विधवा हुई जोकि पतझर मे ं माँग उसकी भरी मुग्ध मधुमास न े,
हो गया कूल नाराज जिस नाव स े पा गई प्यार वह एक मझधार क ा बुझ गया जो दीया भोर में दीन-स ा बन गया रात सम्राट अंधियार क ा,
जो सुबह रंक थ ा, शाम राजा हु आ जो लुटा आज कल फिर बसा भी वह ी, एक मैं ही कि जिसके चरण से धर ा रोज तिल-तिल धसकती रही उम्र-भर !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के ! साँस मेरी सिसकती रही उम्र भर ! प्यार इतना किया जिंदगी में कि जड़- मौन तक मरघटों का मुखर कर दिय ा, रूप-सौंदर्य इतना लुटाया कि ह र भिक्षु के हाथ पर चंद्रमा धर दिय ा,
भक्ति-अनुरक्ति ऐसी मिल ी, सृष्टि की- शक्ल हर एक मेरी तरह हो ग ई, जिस जगह आँख मूँदी निशा आ ग ई, जिस जगह आँख खोली सुबह हो ग ई,
किंतु इस राग-अनुराग की राह प र वह न जाने रतन कौन-सा खो गय ा? खोजती-सी जिसे दूर मुझसे स्वय ं आयु मेरी खिसकती रही उम्र-भर- !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के ! साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !
वेश भाए न जाने तुझे कौन-स ा? इसलिए रोज कपड़े बदलता रह ा, किस जगह कब कहाँ हाथ तू थाम ल े इसलिए रोज गिरता संभलता रह ा,
कौन-सी मोह ले तान तेरा हृद य इसलिए गीत गाया सभी राग क ा, छेड़ दी रागिनी आँसुओ की कभ ी शंख फूँका कभी क्राँति का आग क ा,
किस तरह खेल क्या खेलता तू मिल े खेल खेले इसी से सभी विश्व क े कब न जाने करे याद तू इसलिए याद कोई कसकती रही उम्र-भर !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के ! साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर!
रोज ही रात आई ग ई, रोज ह ी आँख झपकी मगर नींद आई नही ं रोज ही हर सुब ह, रोज ही हर कल ी खिल गई तो मगर मुस्कुराई नही ं,
नित्य ही रास ब्रज में रचा चाँद ने पर न बाजी बाँसुरिया कभी श्याम की इस तरह उर अयोध्या बसाई ग ई याद भूली न लेकिन किसी राम क ी
हर जगह जिंदगी में लगी कुछ कम ी हर हँसी आँसुओं में नहाई मिल ी हर सम य, हर घड़ ी, भूमि से स्वर्ग त क आग कोई दहकती रही उम्र-भर !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के ! सांस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !!
खोजता ही फिरा पर अभी तक मुझे मिल सका कुछ न तेरा ठिकाना कही ं, ज्ञान से बात की तो कहा बुद्धि ने - ' सत्य है वह मगर आजमाना नही ं',
धमर् के पास पहुँचा पता यह चल ा मंदिरों-मस्जिदों में अभी बंद ह ै, जोगियों ने जताया है कि जप-योग ह ै, भोगियों से सुना भोग-आनंद ह ै
किंतु पूछा गया नाम जब प्रेम से धूल से वह लिपट फूटकर रो पड़ ा, बस तभी से व्यथा देख संसार क ी आँख मेरी छलकती रही उम्र-भर !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के ! साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !!