छिप-छिप अश्रु बहाने वालो ं, मोती व्यर्थ लुटाने वालों कुछ सपनों के मर जाने स े, जीवन नहीं मरा करता है ।
सपना क्या है नयन सेज प र, सोई हुई आँख का पान ी और टूटना है उसका ज्यो ं, जागे कच्ची नींद जवानी । गीली उमर बनाने वालो ं, डूबे बिना नहाने वालो ं कुछ पानी के बह जाने स े, सावन नहीं मरा करता है ।
माला बिखर गई तो क्या ह ै, खुद ही हल हो गई समस्य ा आँसू गर नीलाम हुए त ो, समझो पूरी हुई तपस्या ।
रूठे दिवस मनाने वालो ं, फ़टी कमीज़ सिलाने वालो ं कुछ दीपों के बुझ जाने स े, आँगन नहीं मरा करता है ।
लाखों बार गगरियाँ फ़ूटी ं, शिकन न आई पर पनघट प र लाखों बार किश्तियाँ डूबी ं, चहल-पहल वो ही है तट पर ।
तम की उमर बढ़ाने वालो ं, लौ की आयु घटाने वालो ं, लाख करे पतझड़ कोशिश प र, उपवन नहीं मरा करता है ।
लूट लिया माली ने उपव न, लुटी न लेकिन गंध फ़ूल क ी तूफ़ानों तक ने छेड़ा प र, खिड़की बंद न हुई धूल की ।
नफ़रत गले लगाने वालो ं, सब पर धूल उड़ाने वालो ं, कुछ मुखड़ों की नाराज़ी स े, दर्पण नहीं मरा करता है ।