तुम ही नहीं मिले जीवन में

Webdunia
- नीर ज

ND
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनार े
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन मे ं

हुई दोस्ती ऐसी दु:ख से
हर मुश्किल बन गई रुबा ई,
इतना प्यार जलन कर बैठ ी
क्वाँरी ही मर गई जुन्हा ई,
बगिया में न पपीहा बोल ा, द्वार न कोई उतरा डोल ा,
सारा दिन कट गया बीनते काँटे उलझे हुए बसन में ।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनार े
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन मे ं

कहीं चुरा ले चोर न को ई
दर्द तुम्हार ा, याद तुम्हार ी,
इसीलिए जगकर जीवन-भ र
आँसू ने की पहरेदार ी,
बरखा गई सुने बिन वंशी औ' मधुमास रहा निरवंश ी,
गुजर गई हर ऋतु ज्यों कोई भिक्षुक दम तोड़े दे विजन में ।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनार े
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन मे ं


घट भरने को छलके पनघ ट
सेज सजाने दौड़ी कलिया ँ,
पर तेरी तलाश में पीछ े
छूट गई सब रस की गलिया ँ,
सपने खेल न पाए होल ी, अरमानों के लगी न रोल ी,
बचपन झुलस गया पतझर मे ं, यौवन भीग गया सावन में ।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनार े
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन मे ं

मिट्‍टी तक तो रुंदकर जग में कंकड़ से बन गई खिलौन ा,
पर हर चोट ब्याह करके भ ी
मेरा सूना रहा बिछौन ा,
नहीं कहीं से पाती आ ई, नहीं कहीं से मिली बधा ई
सूनी ही रह गई डाल इस इतने फूलों भरे चमन में ।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनार े
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन मे ं

तुम ही हो वो जिसकी खाति र
निशि-दिन घूम रही यह तकल ी
तुम ही यदि न मिले तो है स ब
व्यर्थ कताई असली-नकल ी,
अब तो और न देर लगा ओ, चाहे किसी रूप में आ ओ,
एक सूत-भर की दूरी है बस दामन में और कफन में ।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनार े
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में

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