विश्व चाहे या न चाह े, लोग समझें या न समझे ं, आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे ।
हर नज़र ग़मगीन ह ै, हर होठ ने धूनी रमा ई, हर गली वीरान जैसे हो कि बेवा की कला ई, ख़ुदकुशी कर मर रही है रोशनी तब आँगनों मे ं कर रहा है आदमी जब चाँद-तारों पर चढ़ा ई, फिर दीयों का दम न टूट े, फिर किरन को तम न लूट े, हम जले हैं तो धरा को जगमगा कर ही उठेंगे । विश्व चाहे या न चाहे....
हम नहीं उनमें हवा के साथ जिनका साज़ बदल े, साज़ ही केवल नहीं अंदाज़-औ-आवाज़ बदल े, उन फ़कीरों-सिरफिरों के हमसफ़र ह म, हमउम्र ह म, जो बदल जाएँ अगर तो तख़्त बदले ताज बदल े, तुम सभी कुछ काम कर ल ो, हर तरह बदनाम कर ल ो, हम कहानी प्यार की पूरी सुनाकर ही उठेंगे । विश्व चाहे या न चाहे...
नाम जिसका आँक गोरी हो गई मैली सियाह ी, दे रहा है चाँद जिसके रूप की रोकर गवाह ी, थाम जिसका हाथ चलना सीखती आँधी धरा प र है खड़ा इतिहास जिसके द्वार पर बनकर सिपाह ी, आदमी वह फिर न टूट े, वक़्त फिर उसको न लूट े, जिन्दगी की हम नई सूरत बनाकर ही उठेंगे । विश्व चाहे या न चाहे....
हम न अपने आप ही आए दुखों के इस नगर मे ं, था मिला तेरा निमंत्रण ही हमें आधे सफ़र मे ं, किन्तु फिर भी लौट जाते हम बिना गाए यहाँ स े जो सभी को तू बराबर तौलता अपनी नज़र मे ं, अब भले कुछ भी कहे त ू, खुश कि या नाखुश रहे त ू, गाँव भर को हम सही हालत बताकर ही उठेंगे । विश्व चाहे या न चाहे....
इस सभा की साज़िशों से तंग आक र, चोट खाक र गीत गाए ही बिना जो हैं गए वापिस मुसाफ़ि र और वे जो हाथ में मिज़राब पहने मुश्किलों क ी दे रहे हैं जिन्दगी के साज़ को सबसे नया स्व र, मौर तुम लाओ न ला ओ, नेग तुम पाओ न पा ओ, हम उन्हें इस दौर का दूल्हा बनाकर ही उठेंगे । विश्व चाहे या न चाहे....