अगर थामता न पथ में उँगली इस बीमार उमर क ी हर पीड़ा वैश्या बन जात ी, हर आँसू आवारा होता ।
निरवंशी रहता उजियाल ा गोद न भरती किसी किरन क ी, और ज़िन्दगी लगती जैसे- डोली कोई बिना दुल्हन क ी, दु:ख से सब बस्ती कराहत ी, लपटों में हर फूल झुलसत ा करुणा ने जाकर नफ़रत का आँगन गर न बुहारा होता । प्यार अगर...
मन तो मौसम-सा चंचल ह ै सबका होकर भी न किसी क ा अभी सुबह क ा, अभी शाम क ा अभी रुदन क ा, अभी हँसी क ा और इसी भौंरे की ग़लती क्षमा न यदि ममता कर देत ी ईश्वर तक अपराधी होता पूरा खेल दुबारा होता । प्यार अगर...
जीवन क्या है एक बात ज ो इतनी सिर्फ समझ में आए- कहे इसे वह भी पछता ए सुने इसे वह भी पछता ए मगर यही अनबूझ पहेली शिशु-सी सरल सहज बन जात ी अगर तर्क को छोड़ भावना के सँग किया गुज़ारा होता । प्यार अगर...
मेंघदूत रचती न ज़िन्दग ी वनवासिन होती हर सीत ा सुन्दरता कंकड़ी आँख क ी और व्यर्थ लगती सब गीत ा पण्डित की आज्ञा ठुकराक र, सकल स्वर्ग पर धूल उड़ाक र अगर आदमी ने न भोग का पूजन-पात्र जुठारा होता । प्यार अगर...
जाने कैसा अजब शहर य ह कैसा अजब मुसाफ़िरख़ान ा भीतर से लगता पहचान ा बाहर से दिखता अनजान ा जब भी यहाँ ठहरने आता एक प्रश्न उठता है मन मे ं कैसा होता विश्व कहीं यदि कोई नहीं किवाड़ा होता । प्यार अगर...
हर घर-आँगन रंग मंच ह ै औ’ हर एक साँस कठपुतल ी प्यार सिर्फ़ वह डोर कि जिस प र नाचे बाद ल, नाचे बिजल ी, तुम चाहे विश्वास न लाओ लेकिन मैं तो यही कहूँग ा प्यार न होता धरती पर तो सारा जग बंजारा होता । प्यार अगर...