Hindu nav varsh ko kya kahte hai gudi padwa: अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 2 अप्रैल 2022 शनिवार को हिन्दू नववर्ष प्रारंभ हो रहा है। आखिर हिंदू नववर्ष को क्यों कहते हैं गुड़ी पड़वा, विक्रम संवत और नव संवत्सर? आओ जानते हैं महत्वपूर्ण जानकारी जो हर हिन्दू को इसलिए जानना चाहिए ताकि उसके भ्रम का निदान हो।
कब प्रारंभ होता है हिन्दू नव वर्ष (When does Hindu New Year start) : हिन्दू नववर्ष हिन्दू कैलेंडर और पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रारंभ होता है। यानी चैत्र माह का कृष्ण पक्ष गुजर जाने के बाद अमावस्या के दूसरे दिन से यह नववर्ष प्रारंभ होता है। एक माह में 30 दिन होते हैं जिसे दो भागों में बांटा गया है कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि हिन्दू महिनों के नाम है।
क्यों कहते हैं गुड़ी पड़वा (why say gudi padwa) : महाराष्ट्र या मराठी समाज में इस नववर्ष को गुड़ी पड़वा कहने का प्रचलन है। गुड़ी का अर्थ विजयी पताका और पड़वा का अर्थ प्रतिपदा होता है। सभी हिन्दी भाषी राज्यों में इसे गुड़ी पड़वा और नव संवत्सर के नाम से जाना जाता है, जबकि अन्य राज्यों में युगाड़ी, उगाड़ी, नव संवत्सर पड़वो, युगादि, नवरेह, चेटीचंड, विशु, वैशाखी, चित्रैय तिरुविजा, सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा के नाम से जाना जाता है।
क्यों कहते हैं विक्रम संवत (Why is it called Vikram Samvat) : उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने विदेशी शकों को पराजित कर एक नए युग का सूत्रपात किया था और प्रतिपदा के दिन विजयोत्सव मनाया गया था। इसी के चलते राजा विक्रमादित्य के काल में खगोलविदों ने पहले से चले आ रहे प्राचीन ऋषि संवत और युधिष्ठिर संवत को अपडेट करके सबसे प्राचीन काल गणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया। यानी इस दिन से उनके नाम पर जो कैलेंडर प्रचलित हुआ उसे भारतीय कैलेंडर मान लिया गया था परंतु कालांतर में इस कैलेंडर को हिन्दू कैलेंडर के नाम से मान्यता मिली। हालांकि यह विडंबना ही है कि भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर शक संवत को माना जाता है।
क्यों कहते हैं नव संवत्सर (Why is it called Nav Samvatsara) : अब सवाल यह उठता है कि नववर्ष को क्यों संवत्सर कहा जाता है? दरअसल, जिस तरह प्रत्येक माह के नाम नियुक्त हैं, जैसे चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन, उसी तरह प्रत्येक आने वाले वर्ष का एक नाम होता है। 12 माह के 1 काल को संवत्सर कहते हैं और हर संवत्सर का एक नाम होता है। इस तरह 60 संवत्सर होते हैं। वर्तमान में विक्रम संवत् 2079 से 'नल' नाम का संवत्सर प्रारंभ होगा। इसके पहले राक्षस संवत्सर चल रहा था।
ज्योतिष में बृहस्पति और शुक्र ग्रह को मंगल कार्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। संवत्सर का संबंध बृहस्पति ग्रह की गति, राशि परिवर्तन, उसके उदय और अस्त से है। जैसे धरती के 12 मास होते हैं उसी तरह बृहस्पति ग्रह के 60 संवत्सर होते हैं। प्रतिपदा वाले दिन से 60 संवत्सरों में से एक नया संवत्सर प्रारंभ होता है। इसीलिए इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर अर्थात बारह महीने की कालविशेष अवधि। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है।
60 संवत्सरों के नाम (Names of 60 Samvatsaras) : प्रत्येक वर्ष का अलग नाम होता है। कुल 60 वर्ष होते हैं तो एक चक्र पूरा हो जाता है। इनके नाम इस प्रकार हैं:- प्रभव, विभव, शुक्ल, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, बहुधान्य, प्रमाथी, विक्रम, वृषप्रजा, चित्रभानु, सुभानु, तारण, पार्थिव, अव्यय, सर्वजीत, सर्वधारी, विरोधी, विकृति, खर, नंदन, विजय, जय, मन्मथ, दुर्मुख, हेमलम्बी, विलम्बी, विकारी, शार्वरी, प्लव, शुभकृत, शोभकृत, क्रोधी, विश्वावसु, पराभव, प्ल्वंग, कीलक, सौम्य, साधारण, विरोधकृत, परिधावी, प्रमादी, आनंद, राक्षस, नल, पिंगल, काल, सिद्धार्थ, रौद्रि, दुर्मति, दुन्दुभी, रूधिरोद्गारी, रक्ताक्षी, क्रोधन और अक्षय।
बृहस्पति ग्रह के वर्षों के आधार पर युगों के नाम (Names of Yugas based on the years of Jupiter) : सूर्यसिद्धान्त अनुसार संवत्सर बृहस्पति ग्रह के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। 60 संवत्सरों में 20 -20-20 के तीन हिस्से हैं जिनको ब्रह्माविंशति (1-20), विष्णुविंशति (21-40) और शिवविंशति (41-60) कहते हैं। बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि साठ वर्षों में बारह युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में पांच-पांच वत्सर होते हैं। बारह युगों के नाम हैं– प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय। प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम संवत्सर है। दूसरा परिवत्सर, तीसरा इद्वत्सर, चौथा अनुवत्सर और पांचवा युगवत्सर है। 12 वर्ष बृहस्पति वर्ष माना गया है। बृहस्पति के उदय और अस्त के क्रम से इस वर्ष की गणना की जाती है। इसमें 60 विभिन्न नामों के 361 दिन के वर्ष माने गए हैं। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है।