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गुड़ी पड़वा : भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण त्योहार

नए साल की शुरुआत सूर्य को अर्घ्य देकर करें

Webdunia
हमारी भारतीय संस्कृति और हमारे ऋषियों-मुनियों ने गुड़ी पड़वा अर्थात चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नववर्ष का आरंभ माना है। गुड़ी पड़वा पर्व धीरे-धीरे औपचारिक होता चला जा रहा है। इसका व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया है।

सैकड़ों वर्ष की गुलामी की दासता में रहते हुए हमारी सोच पाश्चात्य की बन गई। अंगरेजी कैलेंडर नए वर्ष को मनाते हैं। यह परंपर हम नहीं तोड़ पाए हैं।

भारतीय नववर्ष गुड़ी पड़वा को समारोहपूर्वक मनाया जाना चाहिए। अब टीवी और चैनलों पर थर्टी फर्स्ट नहीं, नववर्ष प्रतिपदा के प्रचार की दरकार है।


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नववर्ष के संबंध में महामंडलेश्वर स्वामी शांतिस्वरूपानंदजी गिरी का कहना है कि आज का युग टीवी, मीडिया का युग है। सभी लोग पाश्चात्य के 31 दिसंबर और एक जनवरी को अधिक प्रचारित करते रह‍ते हैं। हमारा देश सैकड़ों वर्ष गुलाम रहा है। वैसे भी कथा-सत्संग में युवा पीढ़ी कम ही आती है। टीवी धारावाहिक युवा पीढ़ी के फैशन और व्यसन बन गए हैं।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही गुड़ी पड़वा का पर्व अर्थात नया वर्ष माना जाता है। चैत्र नवरात्रि में घट स्थापना और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। पेड़ों से पतझड़ होता है। फूल लगते हैं। रबी की फसल घर में आती है। जिस तरह होली, दशहरा-दीपावली का पर्व मनाया जाता है उसी तरह नवसंवत्सर मनाना चाहिए।

घरों में घट स्थापना की जाए। ध्वज पताका लगाई जाए। सूर्य को अर्घ्य दिया जाए। भारतीय संस्कृति वर्ष अंगरेजी कैलेंडर वर्ष से पुरानी है। नए जीवन के लिए प्रत्येक सूर्य (प्रतिदिन सूर्योदय के समय) अर्घ्य देते रहे। धर्म हमें यही कहता हैं कि गुड़ी पड़वा का पर्व भारतीय संस्कृति पर्व के रूप में मनाया जाना चाहिए। इसके लिए एक वातावरण बनाने की जरूरत है।

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रामानुजकोट के स्वामी युवराज माधव प्रपन्नचार्य जी का कहना है कि देश में आए आक्रमणकारियों ने भारतीयों की सोच को बदला है। अंगरेजी कैलेंडर से जनमानस में यह सोच बन गई है कि हुड़दंग मचाकर और पार्टी मनाकर नए वर्ष को मनाया जाए। इस सोच को बदलने की आवश्यकता है। हमारा धर्म सरल है।

भारतीय परंपरा के पर्व गुड़ी पड़वा के बारे में युवाओं को सरलता से बताया जाए। एक दिन पर्व मनाने से काम नहीं चलेगा। इसे जीवन में आया हुआ अवसर मानना चाहिए। प्रगति के लिए नया वर्ष भारतीय परंपरा से मनाने का संकल्प लें और सभी युवा वर्ग नवसंवत्सर पर सूर्य को अर्घ्य देने की शुरुआत करें।

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इस संबंध में कल्पना स्वामीनाथ पांडेय का कहना है कि वर्ष प्रतिपदा से नववर्ष गुड़ी पड़वा का आरंभ माना जाता है। गुड़ी पड़वा का पर्व औपचारिक होता चला जा रहा है। संयुक्त परिवार टूटे हैं। आजीविका के लिए अन्य स्थानों पर जाना पड़ा है। परिवार छोटे हो गए। बच्चों को दादा-दादी और नाना-नानी सहज सुलभ नहीं रहे हैं। पाठ्यक्रमों में तकनीकी को प्रधानता दी गई है। लोक से जुड़ी बातें कम हो गई हैं। युवाओं के शिक्षक की भूमिका टीवी के 250 चैनल निभा रहे हैं। रही-सही कसर उनके दोस्त पूरी कर रहे हैं।

भौतिक उन्नति के लिए हमने शरीर, अध्यात्म और परंपराओं को ताक में रख दिया है। इसीलिए गुड़ी पड़वा का महत्व विलुप्त हो चला था। भारत-पाकिस्तान मैच को लेकर इतना बवाल मचा रहता है, मानो तृतीय विश्वयुद्घ होने वाला हो। उसका चौथाई भी नवसंवत्सर गुड़ी पड़वा का प्रचार-प्रसार हो तो हमारी नई पीढ़ी पारंपरिक महोत्सव से जुड़ेगी।

अंगरेजी कैलेंडर के अनुसार 31 दिसंबर और एक जनवरी मनाने का कोई लंबा प्रचलन नहीं है। सबसे पुरानी परंपरा गुड़ी पड़वा से नए वर्ष मनाने की रही है। भारतीय पंचांग का नया वर्ष मनाने के लिए सबसे पहले मोबाइलों के माध्यम से संदेश भेजे जाने चाहिए।

गुड़ी पड़वा को शालीनता और सादगी के साथ मनाया जाना चाहिए। यह हमारी भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण त्योहार है।


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