चैत्र नवरात्र में करें कुलदेवी का पूजन

दुर्गा सप्तशती के पाठ से हर मनोकामना पूर्ण

पं. अशोक पँवार 'मयंक'
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' अम्बे मैया तेरी जय जयका र' के शब्दों से गूँज उठती है भारत की वसुंधरा। हर भारतीय के मन में नवरात्र के दिन माँ की आराधना व पूजन की भावना होती है। ये तो सभी जानतें है कि नवरात्र दो होते हैं। एक नवरात्र आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से शुरू होता है। दूसरे नवरात्र का प्रारम्भ चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से।

इ समें बड़े नवरात्र आश्विन मास में आने वाले नवरात्र को माना गया है। इसी नवरात्र में जगह-जगह गरबों की धूम रहती है। चैत्र में आने वाले नवरात्र में अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा का विशेष प्रावधान माना गया है। वैसे दोनों ही नवरात्र मनाए जाते हैं।

फिर भी इस नवरात्र को कुल देवी-देवताओं के पूजन की दृष्टि से विशेष मानते है। आज के भागमभाग के युग में अधिकाँश लोग अपने कुल देवी-देवताओं को भूलते जा रहे हैं। कुछ लोग समयाभाव के कारण भी पूजा-पाठ में कम ध्यान दे पाते हैं। जब कि इस और ध्यान देकर आने वाली अनजान मुसीबतों से बचा जा सकता है। ये कोई अन्धविश्वास नहीं बल्कि शाश्वत सत्य हैं। इसे आजमाकर देखा जा सकता है।

जब हम संपूर्ण श्रद्धा से देवी की उपासना करते है, तो नारी का भी अपमान नहीं करना चाहिए यही हमारी सच्ची पूजा होगी। हमें कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध से भी बचना चाहिए। तब जाकर हम माँ जगदम्बा की कृपा पा सकते हैं।

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चैत्र नवरात्र में अधिकांशतः मन्त्रों का जाप व अनुष्ठान किया जाता है। ध्यान रहे कोई भी विद्या तभी सफल होती है जब हमारा मन निष्कपट होगा। वरना कितने ही जाप किए जाएँ कितने ही अनुष्ठान किए जाए सफल नहीं हो सकते।

आइए, तन मन को शुद्ध कर संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास से जप किया जाए। कोई भी मन्त्र जाप इन दिनों में सिद्ध होते है। इस नवरात्रि में विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाए तो कई कष्टों से बचा जा सकता है। वैसे भी इसके नित्य पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है। तेज में वृद्धि होती है,आत्मविश्वास बढ़ता है। दुर्गा सप्तशती को विधि विधान से पढ़ने की मंशा रखने वाले बाजार से इसकी पुस्तक खरीद कर लाभ उठा सकते हैं।

घटस्थापना मुहूर्त

सवंत्‌ 2066 शक 1931 चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से नवदुर्गा उत्सव का आरम्भ होता है। इस दिन से ही घटस्थापना की जाती है।इसी दिन से हिन्दू चैत्र मासारम्भ होता है। इसी दिन गुडीपड़वा का त्योहार बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है ।

घट स्थापना मुहूर् त प्रातः 8 बजे से 10 बजे तक लाभ व अमृत का चौघड़िया होनें से शुभ है।

तत्पश्चात दोपहर 12.30 से 2 बजे तक शुभ चौघडि़या होने से घटस्थापना या कलश रखना अति शुभ रहेगा।
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