गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के तेवर इस बार बदले बदले से नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के आक्रामक रुख को देख कई भाजपाई दिग्गज भी स्तब्ध है। गुजरात का चुनावी मैदान हो या सोशल मीडिया का घमासान कांग्रेस सभी दूर भाजपा का बराबरी से सामना कर रही है। लेकिन कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय राज्य की राजनीति के माहिर माने जाने वाले दिग्गज नेता शंकरसिंह वाघेला है।
पिछले कई चुनावों में कांग्रेस की ओर से किला लड़ाने वाले शंकर सिंह वाघेला ने चुनावों से कुछ माह पहले ही पार्टी से दूरी बनाकर कांग्रेस की नाक में दम कर दिया है। हालांकि वह भाजपा में शामिल नहीं हुए लेकिन उनकी यह रणनीति ही कांग्रेस को सबसे ज्यादा परेशान कर रही है।
अभी हाल ही के चुनावों में उन्होंने जिस तरह कांग्रेस की नाक में दम कर दिया था और अहमद पटेल को नाको तले चने चबवा दिए थे। उसकी यादें अभी भी कांग्रेसियों के जेहन में ताजा है। पार्टी आलाकमान ने बेहतरीन रणनीति की मदद से कांग्रेस कार्यकर्ताओं के उत्साह को बढ़ा दिया है और कुछ कांग्रेसी तो इस बार गुजरात में सरकार बनाने का सपना भी देखने लगे हैं।
शंकरसिंह वाघेला ने तीसरे मोर्चे का गठन कर भले ही भाजपा और कांग्रेस दोनों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वाघेला पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि वह 2017 का चुनाव नहीं लड़ेंगे। चुनावी मैदान में उनकी आक्रामकता में कमी ने राजनीतिक विश्लेषकों को भी हैरान कर दिया है। यह भी कहा जा रहा है कि वह परदे के पीछे से भाजपा को फायदा पहुंचाने का खेल रहे हैं।
दरअसल, पिछले कई सालों में भाजपा विरोधी लहर गुजरात में बन रही है, जिसका फायदा कांग्रेस को मिलने की बातें कही जा रही है। ऐसे में यदि जनविकल्प मोर्चा खड़ा होता है तो विरोधी लहर से कांग्रेस को मिलने वाला फायदा बंट जाएगा और इसका फायदा भाजपा को होगा।
उत्तर गुजरात से आने वाले इस नेता का राज्य की कई विधानसभा सीटों पर सीधा प्रभाव है। उनके साथ ही कांग्रेस ने 11 विधायकों को भी निष्कासित किया था। अब देखना यह है कि वाघेला के प्रभाव वाली सीटों पर कांग्रेस किस तरह मतदाताओं को रिझा पाती है।
बहरहाल राहुल गांधी के नेतृत्व में गुजरात के महासमर में उतरी कांग्रेस भले ही इस बात से खुश हो कि यहां की चुनावी फिजा बदल रही है। भले ही हवा कुछ भी कह रही हो पर उत्तर गुजरात में कांग्रेस की मुश्किलें कम नहीं हुई है। वाघेला को कांग्रेस से अलग कर भाजपा ने जो दांव खेला है वह कांग्रेस को भारी पड़ सकता है।