कोई पार नदी के गाता

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- हरिवंश राय बच्‍च न

भंग निशा की नीरवता कर
इस देहाती गाने का स्‍वर
ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता
कोई पार नदी के गाता।

होंगे भाई-बंधु निकट ही
कभी सोचते होंगे यह भी
इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों से सुख पाता
कोई पार नदी के गाता।

आज न जाने क्‍यों‍ होता मन
सुनकर यह एकाकी गायन
सदा इसे मैं सुनता रहता, सदा इसे मैं गाता जाता
कोई पार नदी के गाता।

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