करीब 40-45 साल पहले जब न तो इतना बाजारवाद था और न ही विज्ञापनबाजी, उस समय शहर के पुराने क्षेत्र में गर्मी की दोपहरी में एक ठेलेवाला तरबूज बेचते समय आवाज लगाता था, ले लो, ले लो... लालम का लाल है, गर्मी का काल है। ठेलेवाले के इस कथन में तरबूज की सारी खासियतें छिपी थीं, क्योंकि तरबूज का लाल गूदा खाने में मीठा स्वादिष्ट और रसदार होता है तथा प्यास बुझाकर तरावट देता है। तरबूज के अलावा अन्य कोई दूसरा फल इतनी अच्छी तरह से प्यास नहीं बुझा सकता है।
इसे दक्षिण अफ्रीकी मूल का माना गया है और यह लगभग 5 हजार साल पुराना है। मिस्र के कई भवनों में विशेषकर महलों में इसकी नक्काशी देखी गई है। लोगों की यह भी मान्यता है कि राजा-महाराजाओं की ममी में अन्य वस्तुओं के साथ-साथ तरबूज भी रखा जाता था। सुश्रुत संहिता में बताया गया है कि इसे सिंधु नदी के तट पर उगाया जाता था। भारत में इसकी खेती संभवतः चौथी शताब्दी से की जा रही है। दसवीं शताब्दी में इसकी खेती चीन में हुई, तेरहवीं शताब्दी में यह योरप और 16वीं शताब्दी में अमेरिका पहुंचा।
तरबूज को अंग्रेजी में वॉटर मेलन और वनस्पति-शास्त्र में सिट्रुलस लेनेटस कहते हैं तथा यह कद्दु कुल कुकरबिटेसी में शामिल है। इसका पौधा एक वर्षीय लता के रूप में बालुई जमीन पर तेजी से फैलता है। फल गहरे हरे या चित्तकबरे हरे, खड़ी रेखाओं वाले गोल या अंडाकार, पाँच से पच्चीस किलो वजन तक के होते हैं। जापान में इसकी आकृति चौकोर बनाई गई है, ताकि यहाँ से वहाँ भेजने में सुविधा हो। नवजात फलों को चौकोर प्लास्टिक या लकड़ी के बक्सों में बढ़ने दिया जाता है, जिससे वे चौकोर डिब्बे की तरह का आकार ले लेते हैं। 1990 में अमेरिका के ब्रिल कार्लसन ने 119 किलोग्राम का तरबूज पैदा कर गिनीज बुक में रिकॉर्ड दर्ज करवाया था।
तरबूज का 70 से 75 प्रतिशत भाग खाया जाता है। इसमें स्वादिष्ट और रसीला लाल रंग का गूदा प्रमुख होता है। लाल रंग लाइकोपिन नामक रंजक के कारण होता है। यही एकमात्र ऐसा फल है, जिसमें अन्य फलों और सब्जियों की तुलना में सर्वाधिक लाइकोपिन पाया जाता है। यह एंटीऑक्सीडेंट की तरह कार्य कर फ्री-रेडिकल्स के प्रभाव को कम करता है। तरबूज में बीटा केरोटिन की भी प्रचुर मात्रा पाई जाती है। विटामीन ए और सी के साथ-साथ इसमें इलेक्ट्रोलाइट सोडियम और पोटेशियम की भी भरपूर मात्रा होती है। फल में 95 प्रतिशत पानी होता है।
फल के बीज (मगज) में 40 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। फ्रुट एंड वेजिटेबल इम्प्रूवमेंट सेंटर टेक्सास के निदेशक डॉ. बी. पाटील के अनुसार तरबूज के गूदे और छिलके में सिट्रुलिन रसायन पाया जाता है जो मानव की रक्त वाहिनियों पर कामोत्तेजक दवाई वियाग्रा के समान प्रभाव पैदा करता है।
सिट्रुलिन शरीर में उपस्थित कुछ एंजाइम से क्रिया कर एर्जीमिन अमिनो अम्ल भी बनाता है जो अमोनिया और अन्य विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में सहायक होते हैं। तरबूज के रस से अमेरिका औऱ इंग्लैंड में कार चलाने के प्रयोग भी सफल रहे हैं। जर्नल ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी फॉर बॉयोफ्यूल में हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट अनुसार बेकार तरबूजों के प्रति एकड़ से 20 गैलन बॉयोफ्यूल पैदा किया जा सकता है।