एस्बेस्टस के बारे में यह तो सर्वविदित है कि यह मानव शरीर में प्रवेश करने के बाद शरीर में एकत्रित हो जाता है और बरसों बाहर नहीं निकलता है। इसकी सूक्ष्म मात्रा भी कैंसर पैदा कर सकती है। इसके अलावा इससे फेफड़ों का गंभीर रोग एस्बेस्टोसिस भी हो सकता है।
ये एक बार आंख में पड़ जाए तो आंख में लालिमा, जलन और सूजन से लेकर हमेशा-हमेशा के लिए आंख की रोशनी जा सकती है। कुछ संवेदनशील लोगों में तो रंग में मिले हानिकारक पदार्थ हमेशा के लिए एलर्जी और दमे की तकलीफ तक पैदा कर सकते हैं, बाजार में कृत्रिम रंग खरीदते हुए यदि कुछ बातों का खयाल रखा जाए तो आप न सिर्फ अपना ही नहीं अपनों की सेहत का भी ध्यान रख सकेंगे।
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- पानी में आसानी से और पूरी तरह से घुल जाने वाले रंग ही खरीदें।
- स्थायी रंग, स्याहियां, सुनहरे और चमकीले, चांदी जैसे रंग और पेंट न खरीदें।
- रंग खरीदते समय उसे चुटकी से मसलकर देखें, यदि आपको ऐसा लगता है कि आप चेहरे पर लगाने वाले टेल्कम पावडर को चुटकी में मसल रहे हैं तो रंग खरीदने लायक हैं।
- खुरदुरे और दानेदार रंग कभी न खरीदें।
- आप चाहें तो प्राकृतिक रंग घर पर भी बना सकती हैं।
जानिए अगले पेज पर नेचुरल कलर के बारे में-
- हरे रंग के लिए हाथों में लगाई जाने वाली मेंहदी को आटे में मिलाकर सूखा और पानी में घोलकर गीला रंग बनाया जा सकता है।
- अमलतास, गेंदे या गुलदाउदी के फूलों को पीसकर उसे बेसन में मिलाकर या दो चम्मच कस्तूरी हल्दी को चार चम्मच बेसन में मिलाकर सूखा पीला रंग बनाएं।
- अमलतास के फूलों को पानी में उबालकर गीला, पीला रंग बनाया जा सकता है।
- लाल चंदन के पावडर को आटे में मिलाकर या पानी में घोलकर लाल रंग की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
- लाल गुड़हल और बुरांस के सूखे फूल आटे में मिलाकर सूखा लाल रंग या देर तक पानी में भिगोकर गीला लाल रंग बनाया जा सकता है।
- आंवले के फलों को लोहे की कड़ाही में डालकर देर तक पानी में उबालने से गीला काला रंग बन जाता है।
- टेसू के सूखे फूल पानी में भिगोकर उबालने से खुशबूदार केसरिया रंग बनता है, जो त्वचा की बहुत सारी बीमारियां ठीक करता है।