म्यूजिक थेरेपी : संगीत की स्वर लहरियों से सेहत तक

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भारत में संगीत की परंपरा भले ही बहुत पुरानी रही हो लेकिन संगीत से इलाज या ‘म्यूजिक थेरेपी’ की अवधारणा अभी भारतीयों में बहुत ज्यादा प्रचलित नहीं है। विशेषज्ञों की मानें तो संगीत अपने आप में बहुत प्रभावी है और तनाव तथा कई मानसिक रोगों से निजात दिलाने में तथा तन और मन को प्रसन्न रखने में अहम भूमिका निभाता है।

‘हीलिंग हैंड’ में ‘काउंसलर एंड एडवाइजर’ डॉ. सतीश कपूर का कहना है कि संगीत का प्रभाव बहुत गहरा होता है। यह नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल सकता है और ‘म्यूजिक थेरेपी’ यानी ‘संगीत थेरेपी’ का आधार भी यही है।
 
उन्होंने कहा, ‘संगीत की स्वर लहरियों से मनोरंजन के तौर पर तो मन प्रसन्न होता है। साथ ही यह तनाव और कई मानसिक विकारों को दूर करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जैसे जैसे व्यक्ति संगीत की स्वर लहरियों में खोता जाता है, उसका ध्यान दूसरी बातों से हटता जाता है और वह राहत महसूस करने लगता है।’’ 

डॉ कपूर ने कहा, ‘‘संगीत से इलाज करने पर शुरुआत में नतीजे भले ही बहुत अच्छे न मिलें और व्यक्ति उसका प्रतिरोध करे लेकिन धीरे धीरे इसका सकारात्मक परिणाम देखने को मिलता है।’’ 

म्यूजिक थेरेपी देने वाले काउंसलर पुनीत रल्हन ने कहा कि आज की भागदौड़ भरी जिदंगी में लोगों को कई प्रकार की मानसिक परेशानियों, तनाव और अन्य समस्याओं से जूझना पड़ता है और संगीत इन सबसे उबरने में मददगार साबित हो सकता है।
 
रल्हन ने कहा, 'आज लोगों की जो जीवनशैली है वह कई प्रकार के तनाव और दबाव से गुजरती है और संगीत इन सबसे बाहर निकलने का कारगर उपाय है। म्यूजिक थेरेपी के तहत व्यक्ति के स्वभाव, उसकी समस्या और आसपास की परिस्थितियों के मुताबिक संगीत सुना कर उसका इलाज किया जाता है।’’ 

 डॉ कपूर ने कहा कि म्यूजिक थेरेपी से महिलाओं को काफी फायदा होता है क्योंकि उनको घर के साथ कार्यालय की जिम्मेदारी भी संभालनी होती है। काम का बोझ बढ़ता है तो उन पर तनाव हावी हो जाता है। ऐसे में म्यूजिक थेरेपी उनके लिए कारगर साबित हो सकती है। 

भारत में ‘म्यूजिक थेरेपी’ बहुत ज्यादा प्रचलित नहीं है क्योंकि इस पर बहुत खर्च आता है। संगीत थेरेपी में विकारों को दूर करने के लिए व्यक्ति विशेष के स्वभाव, प्रकृति और समस्या के अनुसार संगीत तैयार करना होता है। इसके लिए आर्केस्ट्रा और अन्य कई उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे जैसे मरीज में सुधार होता है संगीत में उसके अनुसार बदलाव किया जाता है। यही वजह है कि यह थेरेपी महंगी साबित होती है।

रल्हन ने कहा कि संगीतज्ञ सारंग देव ने संगीत के सात सुरों को शरीर के सात अंगों से जोड़ा और इसके मुताबिक संगीत तैयार करने की कोशिश की। जिसमें उन्हें काफी सफलता भी मिली। म्यूजिक थेरेपी से इलाज के लिए ऐसे संगीत का इस्तेमाल किया जाता है जिससे व्यक्ति को चैन मिल सके।

 
डॉ. कपूर ने कहा, 'इलाज के दौरान संगीत सुनते सुनते कई बार लोगों को रोना भी आ जाता है लेकिन बाद में वे हल्का महसूस करते हैं। जब व्यक्ति में नकारात्मकता का स्तर बहुत बढ़ जाता है तो ऐसे में अकेले में जाकर रोना बहुत जरूरी होता है इसे ‘कैथेरेसिस’ कहा जाता है।’’ 
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