सूर्य यानी सृष्टि का निर्माता, यदि सूर्य न हो तो इस धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। विश्व की कई प्राचीन सभ्यताओं और पौराणिक ग्रंथों में सूर्य को साक्षात देवता माना गया है।
सूर्य का ज्योतिष में सर्वोच्च स्थान है। जिन भी जातकों की कुंडली में सूर्यकृत पीड़ा या रोगों से पीड़ा हैं उनके लिए एक अचूक उपाय है जो निश्चित ही न केवल सूर्य दोष शांत करता है बल्कि सामान्य जातक भी यही इस चमत्कारी सूर्य तेल का उपयोग करें तो उनका भी कल्याण होता है। ह्रदय रोग में तो यह रामबाण औषधि की तरह है। आयुर्वेद में भी इसका उल्लेख मिलता है।
पतंजलि के आयुर्वेदशास्त्र में वर्णित है कि सूर्य तेल से रक्त संबंधी विकारों और हृदय रोगों में विशेष लाभ होता है, जानिए इसे बनाने की आसान विधि -
सूर्य तेल बनाने के लिए 200 ग्राम सूरजमुखी व 200 ग्राम तिल का तेल लें ... अब इसमें 4 ग्राम लौंग व 8 ग्राम केशर मिलाएं और लाल रंग की कांच की बोतल में रखें।
यदि कांच की बोतल न हो तो सफेद रंग की बोतल में इस मिश्रण को रखें और बातल के सिरे को लाल कपड़े या लाल रंग के कागज से ढंक दें ...इसे लगभग 15 दिनों तक सूर्य के प्रकाश में रखें।
इन रोगों में है रामबाण : 1 यदि आप उच्च रक्तचाप या ह्रदय रोग से पीड़ित हैं। तब पूरे शरीर पर सूर्य तेल की मालिश करने से लाभ मिलता है।
2 छोटे बच्चों की मालिश सूर्य तेल से करने पर उन्हें विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
3 सूर्य तेल का नियमित उपयोग भी कर सकते हैं, इससे चेहरे पर निखार और कान्ति बढ़ती है। जिससे आप सुंदर दिखने के चाह को पूरा कर सकते हैं।
कब करें उपयोग : सूर्य तेल बन जाने के बाद इसका उपयोग रविवार से शुरू करें। प्रत्येक रविवार को इस सूर्य तेल के द्वारा शरीर पर मालिश करने से किसी भी तरह का सूर्यकृत रोग से मुक्ति मिलती है।
यदि इसे रोज उपयोग में नहीं ला सकते हैं, तो सप्ताह में एक बार यानी रविवार को इस सूर्य तेल का उपयोग जरूर करें।
आप सूर्य तेल का उपयोग महीने में एक बार सिर्फ रविवार के दिन भी कर सकते हैं। चूंकि रविवार सूर्य देव का दिन माना जाता है इसलिए इस तेल की महत्ता और बढ़ जाती है।