जानिए क्‍या है गुलियन बेरी सिंड्रोम? किस तरह प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करता है

Webdunia
शनिवार, 26 फ़रवरी 2022 (11:41 IST)
कोरोना वायरस की तीसरी लहर का प्रकोप बहुत जल्दी सिमट गया। लेकिन एकदम से गुलियन बेरी सिंड्रोम के मामले सामने आ गए। गुजरात में एक सप्ताह के भीतर 12 मामले सामने आ गए। यह बीमारी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली परिधीय तंत्रिका तंत्र पर ही हमला करती है। यह हाथों से शुरू होते हुए आपके पूरे शरीर में फैलने लगती है। इसके लक्षण तेजी से फैलते हैं और बढ़ते-बढ़ते व्यक्ति की स्थिति गंभीर हो जाती है। वह अपनी पेशियों का जरा भी इस्तेमाल नहीं कर पाता है।  

क्या है गुलियन बेरी सिंड्रोम?

यह एक प्रकार की दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल डीसऑर्डर है। इसका सीधा असर इम्यून सिस्टम पर पड़ता है। इम्यून सिस्टम खुद ही अपने ऊपर नकारात्मक तरीके से हावी होने लगता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह सिंड्रोम बैक्टीरियल या वायरल इंफेक्शन के कारण होता है। 
 
इस बीमारी के लक्षण

- हाथ पैर में झुनझुनी होना।
- सांस लेने में तकलीफ होना।
- आंखों से धुंधला नजर आना।
- बोलने में परेशानी होना।
- चेहरे की मांसपेशियां कमजोर होना।
- बार-बार धड़कन तेज होना।
- कब्ज की समस्या होना।
- चलने अथवा सीढ़ी चढ़ने में कठिनाई होना।

किस वजह से होता है गुलियन बेरी सिंड्रोम?
Source - National Institute of Neurological Disorders and stroke

दरअसल, इस बीमारी का सटीक कारण नहीं है। लेकिन यह श्‍वास संबंधी या गेस्‍ट्रोगेस्‍ट्रोइंटेस्‍टाइनल में संक्रमण के कारण होता है। संभवत टीकाकरण जीबीएस के जोखिमों को बढ़ा सकता है। इस पर जारी शोध में यह सामने आया कि जीका वायरस के बाद GBS तेजी से बढ़ने लगा।

इसके लिए एक नर्व कंडक्शन वेलोसिटी टेस्ट किया जाता है। जिससे नर्व की बॉडी में संकेत भेजने की क्षमता ज्ञात होती है और बीमारी को पहचानने में मदद करती है। इस स्थिति में GBS वाले व्यक्ति में सामान्य से अधिक प्रोटीन होता है। ऐसे में विश्‍लेषण करने के लिए फिजिशियन स्‍पाइनल में से फ्लुइड का सैंपल लेते हैं।

गुलियन बेरी सिंड्रोम का उपचार ?
Source - National Institute of Neurological Disorders and stroke

इस बीमारी का सटीक उपचार नहीं है लेकिन थेरेपी मददगार होती है। GBS बीमारी होने पर आमतौर पर हॉस्पिटल के इंटेंसिव केयर यूनिट में ही रखा जाता है और उपचार किया जाता है। इसके उपचार के लिए प्लाज्मा फेरेसिस और हाई डोज इम्युनोग्लोबुलिन थेरेपी दी जाती है। प्‍लाज्‍मा फोरेसिस से बीमारी का खतरा कम होता है। इसका उपचार शुरुआत के दो सप्ताह में शुरू करने पर आराम मिल सकता है।  

इस दौरान अधिक ध्यान रखने की जरूरत होती है क्योंकि बॉडी पैराडाइज भी हो जाती है और ट्रीटमेंट के दौरान डैमेज हो चुकी नसें फिर से ठीक होने लगता है। कभी-कभी व्यक्ति को वेंटिलेटर, हार्ट मॉनिटर या शरीर के कार्य में सहायता करने वाली अन्‍य मशीनों पर रखने की आवश्यकता भी होती है।

जैसे-जैसे व्यक्ति ठीक होने लगता है उन्‍हें रिहैबिलिटेशन सेंटर में शिफ्ट कर दिया जाता है। जहां उन्‍हें दैनिक गतिविधि कार्य, थेरेपी दी जाती है ताकि वह एक फिर से नॉर्मल लाइफ जी सकें।

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