डॉक्टर लोग इसके लक्षणों को लेकर इसलिए भी भ्रम में रहते हैं, क्योंकि इस प्रकार के लक्षण टी.बी. व पेचिश, डायरिया, मलेरिया जैसी बीमारियों में भी पाए जाते हैं। जरा भी रिस्क न लेते हुए मरीज को तुरंत एचआईवी टेस्ट कराने की सलाह देना चाहिए।
संक्रमित व्यक्ति में एड्स के लक्षणों का विकास संक्रमण के 6 महीने से लेकर 10 साल तक में हो सकता है। लक्षण विकसित होने तक व्यक्ति सामान्यतः स्वस्थ दिखाई देता है पर उसके संपर्क में आने वालों को वह संक्रमित कर सकता है।
परीक्षण का तरीका * एचआईवी एलिइजा एंटीबॉडी टेस्ट से संक्रमण को पकड़ा जा सकता है। मुख्य शहरों में यह उपलब्ध है।
* वेस्टर्न ब्लोर टेस्ट एड्स की शतप्रतिशत सही जानकारी देता है। शुरुआत के संक्रमण के लिए पी-24 कोर इंटीजेन व बच्चों में आईजीए एलिइजा ज्यादा महत्व रखता है। संक्रमण बीमारी में कब बदल सकता है, इसके सीडी-4 कोशिकाओं की संख्या का पता लगाया जाता है। सीडी-8 कोशिकाओं की अधिकता, पी-24 एंटीजेन टेस्ट, बीटा-टू आइक्रोग्लोन्यूलीन आदि परीक्षणों की मदद ली जाती है।
* एड्स के मरीज के इलाज में सीडी-4 सेल काउंट और आरएनए कॉपीज टेस्ट की जरूरत होती है। इस परीक्षणों से ही पता चलता है कि दवा कब शुरू करना है और अब यह किस अवस्था में है।
* हाइली एक्टिव एंटीरिट्रोवाइरल थेरेपी द्वारा भी एड्स का उपचार किया जाता है, लेकिन यह तरीका महंगा है, इसका खर्च लगभग 7 हजार रुपए प्रतिमाह आता है और इसे कई वर्षों तक लगातार देना होता है।
एड्स की दवाएं एड्स बीमारी हो जाने पर इससे छुटकारा पाने की दुनिया में अभी कोई दवा नहीं बनी है।
जो भी दवाएं बनी हैं, वे सिर्फ बीमारी की रफ्तार को कम करती हैं, खत्म नहीं करतीं। एचआईवी के लक्षण पाए जाने पर उनका उपचार हो सकता है, ज्यादा देरी होने पर वह भी संभव नहीं रहता। व्यक्ति की मौत के बाद ही इससे छुटकारा मिलता है।
एड्स का उपचार सभी के वश में नहीं होता, यह अत्यंत महंगा उपचार है। इसकी जांच के परीक्षण भी अत्यंत महंगे होते हैं, जो जनसाधारण के वश के बाहर होता है।
एड्स का निदान पूरी तरह संभव नहीं हो पाया है। हां ऐसी दवाएं जरूर हैं जो वायरस के बढ़ते प्रकोप की गति को धीमा कर सकें। एजेडटी, एजीकोथाइमीडीन, जाइडोव्यूजडीन, ड्राईडानोसीन स्टाव्यूडीन आदि जैसी दवाएँ बहुत महँगी हैं।
इसके अलावा न्यूमोसिस्टीस कारनाई, साइटोमेगालोवाइरस माइकोबैक्टीरियम, टोक्सोप्लाज्मा, फंगस आदि हेतु दवा उपलब्ध है। इम्यूनोमोडुलेटर प्रक्रिया भी उपयोग में लाई जा रही है।
यदि एजेडटी दवा का कोर्स एक वर्ष तक लें तो भारतीय रुपयों में एक से सवा लाख रुपए खर्च आएगा, एड्स के वैक्सीन की तो बात ही दूर है। एड्स का वैक्सीन अभी प्रयोग के दौर से गुजर रहा है और इसे बाजार में आने में कई वर्ष लगेंगे। यह वैक्सीन भी इतना सस्ता नहीं होगा कि सभी अफोर्ड कर सकें।