कान की परेशानियों को अनदेखी न करें

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कम सुनाई देना, कान में दर्द या खारिश होना कुछ अन्य आम समस्याएँ होती हैं जो किसी न किसी प्रकार कान बहने की समस्या से जुड़ी होती हैं। कान के बाहर या भीतर पानी जैसे रंगहीन तरल पदार्थ या मवाद या खून के रिसाव को ही आम बोलचाल की भाषा में कान बहना कहते हैं।

कान बहने का शिकार कोई भी व्यक्ति हो सकता है परंतु बच्चों, कुपोषित लोगों, मियादी बुखार के रोगियों तथा तैराकों में इसके होने की संभावना ज्यादा होती है। वायु प्रदूषण, एलर्जी की समस्याएँ, गले में संक्रमण, चिकनपॉक्स, मक्स और रूबैला जैसे बुखार, कुपोषण तथा अस्वास्थ्यकर परिस्थितियाँ भी कान बहने में अहम भूमिकाएँ निभाती हैं। कई बार दाँतों का इंफेक्शन भी कान बहने का कारण बन सकता है।

कान का पर्दा फटने पर दो प्रकार से संक्रमण होता है। पहला कान के पर्दे में सुराख द्वारा और दूसरा पर्दे के साथ-साथ मध्य कान की हड्डी का भी संक्रमित हो जाना। कान और मस्तिष्क के बीच एक पतली सी हड्डी होती है। जब पर्दे के किनारे पर सुराख होता है तब इंफेक्शन मेस्टायड यहाँ से संक्रमण रक्त वाहिनियों के रास्ते मस्तिष्क, उसे घेरने वाली झिल्ली, फेशियल नर्व तथा आंतरिक सतह तक पहुँच सकता है।

इससे मस्तिष्क की सूजन, चेहरे की मांसपेशियों में लकवा, चक्कर आने जैसी समस्याएँ पैदा हो जाती है। रोगी तथा रोग की स्थिति को देखकर ही डॉक्टर इलाज के तरीके का निर्णय करते हैं। यदि ऐडीनायडस अथवा टांसिल्स के कारण इंफेक्शन हो तो उसे दवा देकर ठीक किया जा सकता है।

  बाहरी कान में चोट लगने, फोड़ा-फुन्सी होने या फफूँद लगने पर कान बहने की समस्या हो सकती है। मध्य कान एक नली द्वारा नाक के पिछले तथा गले के ऊपरी हिस्से से जुड़ा होता है।      
इससे भी यदि स्थिति न सुधरे तो इंफेक्टेड एडिनायड तथा टांसिल्स को ऑपरेशन द्वारा निकाल दिया जाता है और बाहरी दवा और खाने वाली दवा के द्वारा कान सुखा दिया जाता है। कान के पूरी तरह सूख जाने के बाद तथा रोग की आक्रामकता शांत हो जाने के बाद ऑपरेशन द्वारा पर्दे के सुराख को बंद कर दिया जाता है। इस ऑपरेशन को टिम्पेनो प्लास्टी कहते हैं। इस ऑपरेशन में कान के पास की त्वचा से ही कृत्रिम पर्दा बना लिया जाता है।

कान बहने का कारण
किसी भी प्रकार का वायरल, बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन कान बहने का कारण हो सकता है। यह बीमारी जन्म से नहीं होती परंतु इसके अनेक कारण हो सकते हैं। बाहरी कान में चोट लगने, फोड़ा-फुन्सी होने या फफूँद लगने पर कान बहने की समस्या हो सकती है। मध्य कान एक नली द्वारा नाक के पिछले तथा गले के ऊपरी हिस्से से जुड़ा होता है। इस कारण नाक तथा गले में होने वाली साइनस तथा टान्सिल जैसी समस्याएँ मध्य कान को प्रभावित करती हैं।

इस स्थिति में कान में सूजन हो जाती है और इसकी ट्यूब बंद हो जाती है जिसके फलस्वरूप कान के मध्य भाग में एक किस्म का तरल पदार्थ इकट्ठा होने लगता है। दबाव बढ़ने पर यह तरल पदार्थ कान के पर्दे को हानि पहुँचाता हुआ बाहर निकल आता है। छोटे शिशु को ठीक से लिटाकर दूध न पिलाने के कारण भी मध्य कान में संक्रमण हो जाता है। अधिकांश महिलाएँ बच्चे को करवट लिटाकर दूध पिलाती हैं। इससे कई बार दूध मध्य कान में पहुँचकर संक्रमण पैदा कर देता है जिससे मवाद बनने लगता है।

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