गर्मियों की रानी : खट्टी-मीठी इमली

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चटखारेदार और मुँह में पानी लाने वाली इमली स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है। इसलिए इसे विभिन्न स्थानों पर विशेष तौर से भोजन में सम्मिलित किया जाता है।

दक्षिण भारत में दालों में रोजाना कुछ खट्टा डाला जाता है, ताकि वह सुपाच्य हो जाए। इसलिए आंध्रवासी भी इमली का भोजन में बेइंतहा इस्तेमाल करते थे, पर 400 वर्ष पूर्व जब पुर्तगालियों ने भारत में प्रवेश किया तब वे अपने साथ टमाटर भी लाए, अतः धीरे-धीरे इमली की जगह टमाटर का इस्तेमाल होने लगा।

तब से टमाटर का इस्तेमाल चल ही रहा है, लेकिन कुछ समय से इस संबंध में नई व चौंकाने वाली जानकारियाँ मिल रही हैं। इसके अनुसार एक बार आंध्रप्रदेश का एक पूरा गाँव फ्लोरोसिस की चपेट में आ गया। इस रोग में फ्लोराइड की अधिक मात्रा हड्डियों में प्रवेश कर जाती है, जिससे हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि वहाँ पीने के पानी में फ्लोराइड अधिक मात्रा में मौजूद है, अतः यह रोग फैला। पहले इमली इस फ्लोराइड से क्रिया कर शरीर में इसका अवशोषण रोक देती थी, लेकिन टमाटर में यह गुण नहीं था, अतः यह रोग उभरकर आया। तब पता चला कि इमली के क्या फायदे हैं।

कच्ची इमली बच्चों को बड़ी प्रिय होती है। हालाँकि आधुनिक बच्चों का प्रकृति से संपर्क लगभग खत्म ही हो गया है। बड़े होने पर चूँकि दाँतों पर से इनेमल निकल जाता है अतः हम इमली नहीं खा पाते हैं। तब भी इमली के उपयोग के अनेक तरीके हैं। गर्मियों में ताजगीदायक पेय बनाने के लिए इमली को पानी में कुछ देर के लिए भिगोएँ व मसलकर इसका पानी छान लें। अब उसमें स्वादानुसार गुड़ या शकर, नमक व भुना जीरा डाल लें। इसमें डले ताजे पुदीने की पत्तियाँ स्फूर्ति की अनुभूति बढ़ाती हैं।

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गर्मियों में इसके नियमित सेवन से लू की संभावना खत्म होती है। यह पेय हल्के विरेचक का कार्य भी करता है। साथ ही धूप में रहने से पैदा हुए सिरदर्द को भी दूर करता है। पकी इमली अपच को दूर कर मुँह का स्वाद ठीक करती है। यह क्षुधावर्धक भी है। इमली पेट के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए भी उपयोगी है। इसके अलावा इसे हृदय का टॉनिक भी माना जाता है।

पित्त समस्याओं के लिए रोजाना रात को एक बेर के बराबर मात्रा इमली कुल्हड़ में भिगो दें। सुबह मसलकर छान लें। थोड़ा मीठा डालकर खाली पेट पी जाएँ। छः-सात दिन में लाभ नजर आने लगेगा।

इसके अलावा इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इसके फूलों से भूख बढ़ने के अलावा व्यंजनों का स्वाद भी बढ़ता है। आयुर्वेद में इमली के बीजों के भी औषधीय उपयोग हैं। इसके बीजों का पावडर पानी में घोलकर बिच्छू के काटे पर लगाया जाता है। इमली के बीजों को रातभर पानी में भिगोकर सुबह छील लें व पीठ दर्द के लिए खूब चबाकर खा लें।

इमली ऊतकों में जमा यूरिक अम्ल निष्कासित करती है, जिससे जोड़ों के दर्द व रह्यूमेटिज्म में आराम मिलता है। समाज में यह भ्रांति है कि इस तरह के रोगियों को इमली से पूर्ण परहेज करना चाहिए, क्योंकि इमली से जोड़ों में जकड़न बढ़ती है। तथ्य यह है कि जोड़ों से यूरिक अम्ल निष्कासन के दौरान दर्द बढ़ जाता है, जिसका जिम्मेदार इमली को मान लिया जाता है।

इमली के निरंतर सेवन से जोड़ों का दर्द दूर हो जाता है। आजकल 30 वर्ष की उम्र में ही लोग खासकर महिलाएँ इस रोग से पीड़ित हो रही हैं, अतः इमली के निरंतर प्रयोग से इस रोग पर काबू पाया जा सकता है। तो हुई न इमली फायदेमंद!

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