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सेहत के लिए खतरनाक हैं सौंदर्य उत्पाद...

गोरा बनाने वाली क्रीम स्वास्थ्य के लिए खतरनाक

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उपभोक्ता एवं प्रतिस्पर्धा के इस युग में गोरी, सुंदर एवं जवान दिखने की होड़ के कारण महिलाओं में विभिन्न तरह के सौंदर्य उत्पादों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इन्हें सेहत के लिए खतरनाक बताया है।

विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में गोरी एवं सुंदर बनाने के दावे के साथ बेची जाने वाले विभिन्न तरह की क्रीम, लोशन, साबुन, आई मेकअप, मसकारा एवं अन्य सौंदर्य प्रसाधनों के इस्तेमाल के खिलाफ जारी चेतावनी में कहा है कि इनमें मौजूद पारा किडनी को खराब कर सकता है।

जाने-माने सौंदर्य विशेषज्ञ तथा नई दिल्ली स्थित कॉस्मेटिक लेजर सर्जरी सेंटर ऑफ इंडिया (सीएलएससीआई) के निदेशक डॉ. पी.के. तलवार कहते हैं कि डब्ल्यूएचओ की यह चेतावनी भारत के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यहां विज्ञापनों के प्रभाव के कारण गोरा बनाने वाली क्रीमों एवं अन्य सौंदर्य प्रसाधनों का अंधाधुंध इस्तेमाल बढ़ रहा है।

डॉ. तलवार के अनुसार इन क्रीमों एवं सौंदर्य प्रसाधनों में पारे के अलावा स्टेरॉयड, हाइड्रोक्युनॉन एवं अन्य खतरनाक रसायन भी मौजूद होते हैं, जिसके कारण त्वचा पतली, कमजोर एवं ढीली हो जाती है। स्टेरॉयड के प्रभाव के कारण त्वचा पीली पड़ जाती है। दरअसल स्टेरॉयड रक्त संचरण को धीमी कर देते हैं, जिसके कारण त्वचा पीली पड़ जाती है और हमें चेहरे के गोरे होने का आभास होता है।

नई दिल्ली किडनी विशेषज्ञ एवं फरीदाबाद स्थित एशियन इंस्टीट्‍यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. जितेन्द्र कुमार ने कहा कि गोरेपन की क्रीम में पारा मुख्य घटक के रूप में मौजूद होता है और जब इसे त्वचा पर लगाया जाता है, तो इसका कुछ अंश शरीर में अवशेषित हो जाता है और यह रक्त में मिल जाता है। पारा एवं अन्य विषाक्त पदार्थों को शरीर से निकालने का काम हमारी किडनी करता है। जब किडनी पारे को शरीर से निकालती है तो पारे के दुष्प्रभाव के कारण वह कमजोर हो जाती है। धीरे-धीरे किडनी खराब हो जाती है।

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उन्होंने बताया कि जब त्वचा कटी-फटी हो, चेहरे पर कील-मुंहासे हो या त्वचा रूग्न हो, तब पारा शरीर में अधिक अवशेषित होता है और किडनी को अधिक नुकसान पहुंचाता है।

एआईएमएस के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. अमित वी. वांगिया के अनुसार झुर्रियां मिटाने या गोरा बनाने वाली क्रीम के त्वचा पर पपडी़ पड़ने या त्वचा के उधड़ने, जलन या खुजली और मुंहासे जैसे दुष्प्रभाव सामान्य हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी क्रीम दवा की श्रेणी में आती हैं इसलिए इन्हें बाजार में लाने से पहले इन पर व्यापक शोध होना चाहिए।

इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल एवं मैक्स हॉस्पिटल में वरिष्ठ कॉस्मेटिक एवं प्लास्टिक सर्जन के रूप में काम कर चुके डॉ. तलवार का कहना है कि गोरा बनाने वाली क्रीमों के दावों में कोई सच्चाई नहीं होती। ऐसी कोई क्रीम या सौंदर्य प्रसाधन नहीं है जो किसी को गोरा बना दें। इसके बजाय व्यक्ति को अपने खान-पान पर ध्यान देना चाहिए, नियमित व्यायाम करना चाहिए और अपने व्यक्तित्व में निखार लाने के साथ धूप से भी बचना चाहिए।

डॉ. तलवार बताते हैं कि त्वचा की झुर्रियों को फेस लिफ्ट के द्वारा छिपाया या मिटाया जा सकता है, जबकि जब चेहरे पर झुर्रियों की बहुत बारीक लाइनें हो या मुंहासे के दाग हो तो उसे केमिकल फेस पीलिंग या लेजर से मिटाया जा सकता है। लेजर और फेस पीलिंग साथ-साथ या अलग-अलग की जा सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि त्वचा मेकअप संबंधी उत्पादों में 61 प्रतिशत उत्पाद त्वचा को गोरा करने वाले होते हैं। त्वचा को गोरा करने वाले साबुनों और क्रीमों से किडनी को तो नुकसान होता ही है, इनके इस्तेमाल से त्वचा की बैक्टीरिया और फंगस संक्रमण के प्रति प्रतिरोधकता भी कम हो जाती है। इसके अलावा इनके इस्तेमाल से एंग्जाइटी, डिप्रेशन या साइकोसिस जैसी मानसिक और स्नायुविक समस्याएं भी हो सकती हैं। यही नहीं वातावरण पर भी इनके बहुत खराब असर पड़ते हैं।

' ग्लोबल हेल्थ' के अनुसार साबुन और क्रीम में पाया जाने वाला पारा नहाने के दौरान पानी में मिल जाता है और यह पानी नालों से होते हुए नदी, समुद्र में मिल जाता है। उसके बाद वहां का पानी मिथाइलयुक्त हो जाता है और मछली के द्वारा यह अत्यधिक विषैली मिथाइल मर्करी हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाती है। किसी गर्भवती महिला द्वारा मिथाइल मर्करीयुक्त मछली के सेवन से पारा उसके भ्रूण में चला जाता है, जिससे प्रसव के बाद बच्चे में स्नायु संबंधी विकृतियां हो सकती हैं।

विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार कॉस्मेटिक उत्पाद बनाने वाली कुछ कंपनियां उपभोक्ता के दबाव के कारण मस्कारा और आंखों के मेकअप के उत्पादों में पारा का इस्तेमाल नहीं करते है, लेकिन अधिकतर कंपनियां मेकअप उत्पादों की बिक्री को बढा़ने के लिए पारायुक्त कॉस्मेटिक उत्पादों का ही निर्माण करती हैं।

अधिकतर साबुन में लगभग एक से तीन प्रतिशत मर्करी आयोडाइड होता है जबकि क्रीम में एक से 10 प्रतिशत तक मर्करी अमोनियम होता है। इसलिए साबुन, क्रीम या अन्य कॉस्मेटिक उत्पादों के इस्तेमाल से पहले इनके पैकेट पर मर्करी की मात्रा की जांच करना जरूरी है। (वार्ता)

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