सेहत से खिलवाड़ करती खुशबू

भीनी-भीनी खुशबू का प्रयोग करें संभल कर

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इत्र और परफ्यूम्स की भीनी-भीनी खुशबू हम सबको दीवाना बना देती है लेकिन इनका संभलकर ही इस्तेमाल करें नहीं तो.. अरे डरिए मत, ये तो हम आपको इसलिए बता रहे हैं कि आप थोड़ी सावधानी रखें। वैसे तो एयरफ्रेशनर्स और एरोसॉल वातावरण को महकाने का काम करते हैं, लेकिन विभिन्न अनुसंधानों से यह जानकारी मिली है कि ये बच्चों और उनकी माताओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।

गर्भावस्था या बचपन की आरंभिक अवस्था के दौरान उसका लगातार उपयोग किया जाए तो बच्चों में डायरिया तथा कर्णशूल और माताओं में सिरदर्द तथा अवसाद की आशंका बढ़ जाती है। इन शिकायतों के पीछे वे वाष्पशील आर्गेनिक यौगिक होते हैं, जिन्हें उत्पादों द्वारा छोड़ा जाता है। इस बारे में आर्किल ऑफ एनवायरमेंट हेल्थ ने अनुसंधान कर बताया है कि सुरक्षित तो यह होगा कि हम अपने घरों में इनका उपयोग सीमित कर दें।

वाष्पशील आर्गेनिक यौगिक (वीओसी) से जलन होती है। यह आमतौर पर आंतरिक स्रोतों यथा फ्लोर एडहेसिव, पैंट फनीर्शिंग और सफाई करने वाले पदार्थों में शामिल होते है। अनुसंधान में यह भी पाया गया है कि जब घरों में वीओसी का स्तर बढ़ने लगता है तो उसके साथ ही परेशानियाँ भी बढ़ने लगती हैं। जिन महिलाओं और बच्चों में सबसे ज्यादा समस्याएँ हुईं, उनके बारे में यह बात सामान्य रूप से पाई गई कि वे एयरफ्रेशनर्स तथा एरोसॉल का जरूरत से ज्यादा उपयोग करते थे।

उन घरों में जहाँ एयरफ्रेशनर्स, जिसमें सिस्टम्स स्प्रे और एरोसॉल शामिल है, प्रति सप्ताह के बजाए रोजाना उपयोग करते हैं तो बच्चों में डायरिया की आशंका 32 प्रतिशत बढ़ गई थी। इन बच्चों में कर्णशूल की समस्याएँ भी देखी गई थीं। इसके अलावा पॉलिश, डियोडरेंट और हेयर स्प्रे से भी बच्चों में डायरिया की आशंका 30 प्रतिशत बढ़ी है तथा बच्चों की माताएँ भी प्रभावित हुई हैं।

वे माताएँ जो कि नियमित रूप से फ्रेशनर्स और एयरोसॉल का उपयोग करती हैं उनमें सिरदर्द की आशंका 10 प्रतिशत बढ़ जाती है तथा अवसाद की आशंका 26 प्रतिशत तक।

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इस बारे में प्रमुख डॉ. एलेक्जेंडर फैरो का कहना है कि लोग यह सोच सकते हैं कि इन उत्पादों का प्रयोग करने से उनके घर स्वच्छ और स्वास्थ्यप्रद होते होंगे, लेकिन स्वच्छता का अर्थ स्वास्थ्यप्रद कदापि नहीं होता। एयरफ्रेशनर अन्य एरोसॉल और घरेलू उत्पादों के साथ मिलकर एक जटिल रसायन के मिश्रण का निर्माण करता है और घर के वातावरण में वाष्पीकृत रसायन पैदा हो जाते हैं।

उनका कहना है कि गर्भवती महिलाएँ और बच्चियाँ जिनकी उम्र छः वर्ष तक की होती हैं, संभवतः उन्हें इससे असर पड़ता होगा, क्योंकि वे अपना 80 प्रतिशत समय घर पर ही व्यतीत करते हैं। अन्य समूहों में भी इसके असर होते होंगे। बूढ़े लोगों पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा क्योंकि वे भी अक्सर घर पर ही रहते हैं।

हालाँकि इस बारे में और अधिक अनुसंधान आवश्यक है, लेकिन इस बीच यह सुरक्षित होगा कि लोग अपने घरों में सीमित मात्रा में एयरफ्रेशनर तथा एरोसॉल का उपयोग करें। प्रकृति ने कई प्राकृतिक एयरफ्रेशनर दिए है। मसलन यदि एक नींबू निचोड़ दिया जाए तो वह भी हवा को ताजा बनाने में उतना ही प्रभावी होता है।

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