एसी, कूलर में रहने वालों को खतरा!

कम तापमान में फैलता है स्वाइन फ्लू का वायरस

Webdunia
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इंदौर। यदि आप एसी कूलर की ठंडी हवा में ज्यादा वक्त बिताते हैं तो सावधान हो जाइए। स्वाइन फ्लू के वायरस कम तापमान में तेजी से फैलते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी चेतावनी दी है कि स्वाइन फ्लू ठंड के महीनों में ज्यादा गति से फैलेगा। इसी के चलते पुणे के कई दफ्तरों में एसी, कूलर का उपयोग बंद कर दिया गया है।

अमेरिकन सेंटर फॉर डिजिज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन द्वारा मई 2009 में इन्फ्लूएंजा एच1एन1 वायरस का सूक्ष्म परीक्षण किया गया था। इसमें विशेषज्ञों ने पाया कि एच1एन1 कम तापमान में ज्यादा तेजी से पनपता है। एक इन्सान से दूसरे इन्सान को भी ठंड के दिनों में ज्यादा संक्रमित करता है। खासकर एसी, कूलर में रहने वाले इस वायरस के निशाने पर ज्यादा रहते हैं। जबकि 32 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर यह वायरस लगभग निर्जीव हो जाता है।

ठंडे देशों की बीमारी

स्वाइन फ्लू के वायरस सबसे पहले वर्ष 1918 में फैले थे। वायरस का मूल स्थान अब तक अज्ञात है, लेकिन माना जाता है कि नॉर्थ अमेरिका के पिग फार्म से यह बीमारी दुनिया के कई ठंडे देशों में फैली थी। हालाँकि 1918 से लेकर अब तक इसके वायरसों की प्रकृति बदलने के कारण इसे अलग-अलग नाम दिए गए। इस वर्ष एच1एन1 वायरस है जिसे पनपने के लिए कम तापमान की जरूरत होती है। इस साल पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में आने वाले देशों में यह बीमारी तेजी से फैली क्योंकि मई से जुलाई के बीच उत्तरी गोलार्ध का तापमान कम होता है।

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अब दक्षिणी गोलार्द्ध स्वाइन फ्लू के निशाने पर हैं। इस क्षेत्र के भी जिन देशों में ठंड का मौसम होगा वहाँ यह ज्यादा प्रभावित करेगा। भारत में स्वाइन फ्लू के वायरस पहुँचने में चार-पाँच महीनों का वक्त इसीलिए लगा क्योंकि यहाँ अब तक गर्मी के दिन चल रहे थे। स्वाइन फ्लू के चलते पुणे समेत महाराष्ट्र के कई बड़े शहरों के दफ्तरों में एसी, कूलर कुछ दिनों के लिए बंद कर दिए गए हैं।

भीड़भाड़ वाले स्थानों से बचें

एमजीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. अशोक वाजपेयी कहते हैं कि वायरल बुखार जैसे वायरस भी ठंड के दिनों में ज्यादा फैलते हैं। एच1एन1 वायरस कम तापमान में ज्यादा सक्रिय रहते हैं। उन्होंने कहा कि भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों, शॉपिंग मॉल, थियेटर आदि जगह जाने से अभी बचना चाहिए। यदि जाना जरूरी हो तो मास्क पहनकर जाएँ। खाँसते-छींकते वक्त मुँह पर रुमाल रखें।

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