हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भले ही पूरी ताकत झोंक दी है, लेकिन इस बार उसके लिए चुनौतियां भी कम नहीं हैं। इस चुनाव में सेना की अग्निवीर योजना समेत कई मुद्दे ऐसे हैं, जिनके चलते भाजपा बैकफुट पर दिखाई दे रही है। पहाड़ी लोगों का मन वोट डालते समय कैसा रहेगा, यह कोई नहीं जानता, लेकिन हम यहां 5 ऐसी चुनौतियों की बात कर रहे हैं, जो हिमाचल चुनाव में भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बन सकती हैं।
एंटी इनकंबेंसी : हिमाचल में एंटी इनकंबेंसी साफ दिखाई दे रही है। 2021 में मंडी लोकसभा सीट एवं 3 विधानसभा सीटों पर केन्द्र और राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा की हार हुई थी। जुब्बल-कोटखाई सीट पर तो भाजपा उम्मीदवार नीलम सरैइक जमानत भी नहीं बचा पाई थीं। फतेहपुर और अर्की उपचुनाव में भी भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा था। मंडी लोकसभा उपचुनाव में तो भाजपा का सैनिक कार्ड भी फेल रहा था। यहां भाजपा ने कांग्रेस की प्रतिभा सिंह के मुकाबले कारगिल वार के हीरो ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह को मैदान में उतारा था, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई। यहां प्रतिभा सिंह ने 8000 से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की थी।
अग्निवीर योजना : केन्द्र सरकार द्वारा सेना में भर्ती के लिए कुछ समय पहले लॉन्च की गई अग्निवीर भर्ती योजना का इस राज्य में मतदाताओं पर नकारात्मक असर हो सकता है। यहां बड़ी संख्या में युवा सेना में जाते हैं। ऐसे में सिर्फ 4 साल के लिए लागू की गई इस योजना से उन युवाओं में असंतोष है जो सेना में अपना करियर बनाना चाहते थे। हालांकि सरकार ने अग्निवीर योजना के फायदे भी युवाओं को गिनाए हैं, लेकिन वे कहीं न कहीं इस योजना को अपने भविष्य से खिलवाड़ ही मान रहे हैं। क्योंकि 4 साल सेना में सेवा देने के बाद लौटने वाले युवाओं को ना पेंशन का लाभ मिलेगा न ही अन्य सुविधाओं का, जो वर्तमान में पूर्व सैनिकों को मिल रही हैं।
पेंशन बनेगी टेंशन : विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने अपने पूरे प्रचार अभियान को ही पुरानी पेंशन की बहाली के वादे की बुनियाद पर खड़ा किया है। उसे उम्मीद है कि वह ओपीएस और अन्य वादों के जरिए हिमाचल की सत्ता पर काबिज हो सकती है। कुछ स्थानीय लोगों का भी मानना है कि ओपीएस इस चुनाव में बड़ा मुद्दा बन गया है। कांग्रेस भी बार-बार कह रही है कि भाजपा ओपीएस के सवाल पर बचने की कोशिश कर रही है।
एक जानकारी के मुताबिक हिमाचल सरकार में वर्तमान में 2 लाख से अधिक सरकारी कर्मचारी हैं, जबकि लगभग इतनी ही संख्या में सेवानिवृत कर्मचारी हैं। ऐसे में मात्र 55 लाख मतदाताओं वाले राज्य में यह संख्या निर्णायक साबित हो सकती है।
महंगाई : हालांकि महंगाई किसी एक राज्य का मुद्दा नहीं है, लेकिन आम आदमी महंगाई से बुरी तरह त्रस्त है। कोरोना काल में लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है, साथ ही बढ़ी हुई महंगाई ने 'कोढ़ में खाज' का काम किया। ऐसे में महंगाई को लेकर तो देशभर में लोगों में नाराजगी है।
बेरोजगारी : बेरोजगारी भी देशव्यापी समसमस्या है। पूरे देश का युवा बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है। ऐसा भी माना जाता है कि देश के युवा वोटर का झुकाव भाजपा की ओर रहता है, लेकिन बेरोजगारी के मुद्दे पर यदि उसका रुख पलटता है तो हिमाचल में भाजपा की मुसीबत बढ़ सकती है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2023 के अंत तक देशभर में युवाओं को 10 लाख नौकरियां देने का ऐलान किया है। इस घोषणा का युवाओं पर कितना असर होगा, यह चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल पाएगा।
हिमाचल प्रदेश की 68 सदस्यीय विधानसभा में जिस दल के खाते में 35 या उससे ज्यादा सीटें आएंगी, वह इस पहाड़ी राज्य में अपनी सरकार बनाने में सफल होगा। हालांकि राज्य के 37 साल के राजनीति इतिहास पर नजर डालें तो यहां 'परिवर्तन की परंपरा' रही है। यहां किसी भी दल को जनता ने लगातार 2 बार सरकार बनाने का मौका नहीं दिया है।