सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : सरस्वती के सपूत

वसंत पंचमी : निराला जयंती विशेष

Webdunia
विश्वनाथ त्रिपाठी



 
FILE



निराला का जन्मदिवस वसंत-पंचमी को मनाया जाता है। लोगों ने मान लिया है कि किसी और दिन उनका जन्म हो ही नहीं सकता था। वसंत-पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा होती है। निराला सरस्वती के वरद पुत्र थे। सरस्वती साधक थे। खड़ी-बोली हिंदी में सरस्वती पर जितनी कविताएँ निराला ने लिखी हैं किसी और कवि ने नहीं।

उन्होंने सरस्वती को अनेक अनुपम एवं अभूतपूर्व चित्रों में उकेरा है। उन्होंने सरस्वती के मुखमंडल को करुणा के आँसुओं से धुला कहा है। यह सरस्वती का नया रूप है। उन्होंने किसानों की सरस्वती की प्रतिष्ठा की है। जिस तरह तुलसी ने अन्नपूर्णा को राजमहलों से निकालकर भूखे-कंगालों के बीच स्थापित किया उसी तरह निराला ने सरस्वती को मंदिरों, पूजा-पाठ के कर्मकांड से बाहर लाकर खेतों-खलिहानों में श्रमजीवी किसानों के सुख-दुख भरे जीवन क्षेत्र में स्थापित किया -

हरी-भरी खेतों की सरस्वती लहराई
मग्न किसानों के घर उन्मद बजी बधाई

बधाई बजने के पहले शीत का प्रकोप भी सरस्वती की ही माया में अंकित है -

प्रखर शीत के शर से जग को बेधा तुमने
हरीतमा के पत्र-पत्र को छेदा तुमने
शीर्ण हुई सरिताएँ साधारण जन ठिठुरे
रहे घरों में जैसे हों, बागों में गिठुरे
छिना हुआ धन, जिससे आघे नहीं वसन-तन
आग ताप कर पार कर रहे गृह-जीवन।


सरस्वती का साधक बनना सफलता की साधना नहीं है। निराला का कवि-जीवन प्रकट करता है कि सफलता और सार्थकता समानार्थक नहीं हैं। विषम-समाज में सफल व्यक्ति प्रायः सार्थक नहीं होते। सफलता निजी जीवन तक सीमित होती है। सार्थकता का संदर्भ सामाजिक एवं व्यापक मूल्यों का क्षेत्र है। सरस्वती भाषा की देवी हैं। वाणी हैं। वाणी सामाजिक देवी है। वे शब्दों को सिद्धि देती हैं।

कवि सरस्वती की साधना करके शब्दों को अर्थ प्रदान करता है। उन्हें सार्थक बनाता है। वस्तुतः शब्द ही कवि की सबसे बड़ी संपत्ति हैं और उसी संपत्ति पर कवि को सबसे अधिक भरोसा होता है। तुलसी ने लिखा था -'कबिहिं अरथ आखर बल साँचा' कवि को अर्थ और अक्षर का ही सच्चा बल होता है।

लेकिन शब्दार्थ पर यह विश्वास कवि को कदम-कदम पर जोखिम में डालता है। सफल साहित्यकार इस जोखिम में नहीं पड़ते। वे शब्दों की अर्थवत्ता का मूल्य नहीं चुकाते। सरस्वती के साधक पुत्र यह जोखिम उठाते हैं और शब्दों के अर्थ का मूल्य चुकाते हैं। और वही उनकी शब्द-साधना को मूल्यवान बनाता है। निराला का जीवन मानो इस परीक्षा की अनवरत यात्रा है। उसमें से अनेक से हिंदी समाज परिचित है और अनेक से अभी परिचित होना बाकी है। एक उदाहरण मार्मिक तो है ही, मनोरंजक भी है।

कहते हैं, एक वृद्धा ने घनघोर जाड़े के दिनों में निराला को बेटा कह दिया। वृद्धाएँ प्रायः युवकों को बेटा या बच्चा कहकर संबोधित करती हैं। वह वृद्धा तो निराला को बेटा कहकर चुप हो गई लेकिन कवि निराला के लिए बेटा एक अर्थवान शब्द था। वे इस संबोधन से बेचैन हो उठे। अगर वे इस बुढ़िया के बेटा हैं तो क्या उन्हें इस वृद्धा को अर्थात्‌ अपनी माँ को इस तरह सर्दी में ठिठुरते छोड़ देना चाहिए। संयोग से उन्हीं दिनों निराला ने अपने लिए एक अच्छी रजाई बनवाई थी। उन्होंने वह रजाई उस बुढ़‍िया को दे दी। यह एक साधारण उदाहरण है कि शब्दों को महत्व देने वाला कवि शब्दार्थ की साधना जीवन में कैसे करता है।

यह साधना केवल शब्द पर ही विश्वास नहीं पैदा करती है, वह आत्मविश्वास भी जगाती है। जिन दिनों निराला इलाहाबाद में थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के यशस्वी वाइस चांसलर अमरनाथ झा भी वहीं थे। शिक्षा, संस्कृति और प्रशासकीय सेवाओं के क्षेत्र में अमरनाथ झा का डंका बजता था। उनका दरबार संस्कृतिकर्मियों से भरा रहता था।

अमरनाथ झा ने निराला को पत्र लिखकर अपने घर पर काव्य पाठ के लिए निमंत्रित किया। पत्र अंग्रेजी में था। निराला ने उस पत्र का उत्तर अपनी अंग्रेजी में देते हुए लिखा - आई एम रिच ऑफ माई पुअर इंग्लिश, आई वाज ऑनर्ड बाई योर इनविटेशन टू रिसाइट माई पोयम्स एट योर हाउस। हाउ एवर मोर आनर्ड आई विल फील इफ यू कम टू माई हाउस टू लिसिन टू माई पोयम्स।" (मैं गरीब अंग्रेजी का धनिक हूँ। आपने मुझे अपने घर आकर कविता सुनाने का निमंत्रण दिया मैं गौरवान्वित हुआ। लेकिन मैं और अधिक गौरव का अनुभव करूँगा यदि आप मेरे घर आकर मेरी कविता सुनें)।

निराला तो कहीं भी, किसी को भी कविता सुना सकते थे लेकिन वे वाइस चांसलर और अपने घर पर दरबार लगाने वाले साहित्य संरक्षक के यहाँ जाकर अपनी कविताएँ नहीं सुनाते थे। यह शब्दार्थ का सम्मान, सरस्वती की साधना का सच्चा रूप था।

कहते हैं, एक बार ओरछा नरेश से अपना परिचय देते हुए निराला ने कहा,'हम वो हैं जिनके बाप-दादों की पालकी आपके बाप-दादा उठाते थे।' यह कवि की अपनी नहीं बल्कि कवियों की परंपरा की हेकड़ी थी और निराला उस पारंपरिक घटना स्मृति का संकेत कर रहे थे, जब सम्मानित करने के लिए छत्रसाल ने भूषण की पालकी स्वयं उठा ली थी।

हिंदी साहित्य में ऐसे कवियों की परंपरा है जिसके श्रेष्ठ वाहक कबीर, तुलसी और सूरदास हैं। रीतिकालीन कवियों में भी अनेक ने यह जोखिम उठाया है। गंग कवि को तो जहाँगीर ने हाथी के पैरों तले कुचलवा ही दिया था।

निराला जैसे कवि के व्यक्तित्व को हम आज के परिदृश्य में कैसे देखें। पहली बात तो मन में यही आती है कि राजनीतिक रूप से स्वतंत्र होने के बाद कितनी तेजी से हम सांस्कृतिक दृष्टि से पराधीन हो गए हैं। यह ऐतिहासिक विडंबना अब अबूझ नहीं रह गई है। साफ दिखलाई पड़ रही है। एक ओर देश के प्रायः सभी सांस्कृतिक मंचों पर अंतर्राष्ट्रीय पूंजीवादी अपसंस्कृति का कब्जा बढ़ता जा रहा है और उससे भी यातनाप्रद स्थिति यह है कि हम उससे उबरने का कोई उद्योग नहीं कर रहे हैं। बाहरी तौर पर देखने से स्थिति बड़ी चमत्कारी और सुखद लगती है।

जिस तरह हम गाँधी की तुलना आज के नेताओं से करने पर विक्षुब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं, उसी तरह आज के हिंदी साहित्यकारों की तुलना निराला से करने पर हम विक्षुब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं।

वेबदुनिया पर पढ़ें

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

वर्कआउट करते समय क्यों पीते रहना चाहिए पानी? जानें इसके फायदे

तपती धूप से घर लौटने के बाद नहीं करना चाहिए ये 5 काम, हो सकते हैं बीमार

सिर्फ स्वाद ही नहीं सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है खाने में तड़का, आयुर्वेद में भी जानें इसका महत्व

विश्‍व हास्य दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

समर में दिखना है कूल तो ट्राई करें इस तरह के ब्राइट और ट्रेंडी आउटफिट

सभी देखें

नवीनतम

Happy Laughter Day: वर्ल्ड लाफ्टर डे पर पढ़ें विद्वानों के 10 अनमोल कथन

संपत्तियों के सर्वे, पुनर्वितरण, कांग्रेस और विवाद

World laughter day 2024: विश्‍व हास्य दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

फ़िरदौस ख़ान को मिला बेस्ट वालंटियर अवॉर्ड

01 मई: महाराष्ट्र एवं गुजरात स्थापना दिवस, जानें इस दिन के बारे में