खुदा की बस्ती : पुस्तक अंश

राजकमल प्रकाशन

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विगत दिनों राजकमल प्रकाशन ने बेहतरीन उपन्यासों की श्रृंखला प्रस्तुत की है। पेश है चर्चित पुस्तक 'खुदा की बस्ती' का परिचय एवं प्रमुख अंश :

पुस्तक के बारे में
' खुदा की बस्ती' शौकत सिद्दीकी का बहुचर्चित बहुप्रशंसित उपन्यास है। इसे पाकिस्तान के सर्वोच्च पुरस्कार 'आदमजी प्राइज' से सम्मानित किया गया है। इसके उर्दू में पाकिस्तान में तीस संस्करण छप चुके हैं और संसार की प्रायः सभी भाषाओं में यह उपन्यास अनूदित होकर प्रसिद्धि पा चुका है। इस उपन्यास पर आधारित सिन्ध प्रांत और कराची के बीच खुदा की बस्ती बसाई गई है। उपन्यास अनोखे अंदाज में लिखश गया है। इससे पहले उर्दू में इस अंदाज में कोई उपन्यास नहीं लिखा गया।

पुस्तक के चुनिंदा अंश
खिजाँ-रसीदा पत्ते आँगन में खड़ खड़ाते रहे। हवा सरसराती रही। दबी-दबी सरगोशियाँ उभरती रहीं। सुलताना आहिस्ता-आहिस्ता चलती हुई बावर्ची खाने से निकली। उसने आँगन उबूर किया और दरवाजे की कुंडी खोल दी। वह उस वक्त किसी सिहरजदा हस्ती की तरह मजबूत (मंत्रमुग्ध) नजर आ रही थी। सलमान ने दरवाजा खोला और अंदर आ गया। धुँधली रोशनी में उसने सामने खड़ी हुई सुलताना को देखा और ठिठक गया...।

अली अहमद लम्हाभर के लिए रूका। फिर उसने सिलसिला-ए-कलाम जारी रखते हुऐ कहा 'लीडरी तो दौलत से भी हासिल होती है और दौलत कमाने के नुस्खे तलाश करने के लिए बाजार से 'दौलत कमाओ और लखपति बन जाओ' किस्म की किताब खरीदने की भी जरूरत नहीं। खाँ बहादुर फर्जन्द अली से सजूअ (संपर्क) कीजिए। वह दौलत पैदा करने का अच्छा खासा चलता-फिरता इश्तहार है।

  'खुदा की बस्ती' शौकत सिद्दीकी का बहुचर्चित बहुप्रशंसित उपन्यास है। इसे पाकिस्तान के सर्वोच्च पुरस्कार 'आदमजी प्राइज' से सम्मानित किया गया है। इसके उर्दू में पाकिस्तान में तीस संस्करण छप चुके हैं      
शाहिद की आँखों में चिराग झिलमिला रहे थे। होंठों पर लर्जिश (कम्पन) थी। उसने दोनों हाथ फैलाए और बेइख्तियार सुल्तान को अपने बाजुओं में भींच लिया। सुलताना कसमसाकर रह गई। फिर एक ऐसा महला आया कि उसने निढाल होकर अपना सिर शाहिद के कंधे से टिका दिया। वह मोम की तरह पिघल चुकी थी। कमरे की खोमाशी में शाहिद की तेज साँसों की सरसराहट साफ सुनाई दे रही थी।

समीक्षकीय टिप्पणी
' खुदा की बस्ती' उपन्यास के सारे चरित्र वही हैं जो खुदा की जीती-जागती बस्तियों में भी मिल जाते हैं। अच्छे-बुरे, गुंडे, मवाली, शिद्दत से प्रेम करने वाले और उसी शिद्दत से नफरत करने वाले भी। छोटे-मोटे चोर उच्चके, जेबकतरे, राजनीति का एक हिस्सा बन जाने वाले भी। उपन्यासकार ने इन चरित्रों में कहानी गूँथने की जो अनोखी शैली अपनाई है, उसने उर्दू की साहित्यिक दुनिया में एक ऐसी चमक पैदा की जो इस उपन्यास से पहले कभी नहीं देखी गई।

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