जलता हुआ चिराग : दोहा संग्रह

पुस्तक समीक्षा

Webdunia
कृष्ण कुमार भारती य
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सतसैया के दोहे ज्यों नाविक के तीर।
देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर।'

किसी आलोचक द्वारा बिहारी के दोहों की मारक क्षमता पर की गई टिप्पणी रोहित यादव के दोहों पर भी बखूबी लागू होती है। रोहित यादव के सद्य प्रकाशित दोहा संग्रह 'जलता हुआ चिराग' में संकलित 455 दोहे दुर्बल मानव मन को हौंसला देकर लक्ष्य की ओर उन्मुख होने की प्रेरणा देते हैं। मनोविकारों पर विजय पाने को उत्प्रेरित करते हैं। राष्ट्रभक्ति की भावना पर बल देते हैं।

रोहित के दोहों में शब्द चमत्कार का आकर्षण न होकर भावपक्ष की ओर ध्यान अधिक है। दो पंक्तियों में लेखक ने अपार भाव सम्पदा का समावेश कर गागर में सागर भरने की कोशिश की है। रोहित इन दोहों में युगीन विसंगतियों व विकृतियों के विरुद्ध अपना आक्रोश दर्ज करवाते हैं परंतु उनकी आवाज में न तो गुस्सा है और न ही उच्छृंखलता।

सामाजिक, पारिवारिक व इन्सानी रिश्तों के मध्य खटास व बिखराव के प्रति उनकी पीड़ा भी इन दोहों में जाहिर हुई है लेकिन वे निराश न होकर सकारात्मकता व आशावादिता से सराबोर है। मानव को तनाव, अवसाद, पीड़ा व पलायन से मुक्त कर खुले गगन में ऊँची उडान भरने की प्रेरणा देते हैं।

अनुभूति की प्रामाणिकता व अभिव्यक्ति की सात्विकता रोहित यादव के रचनाकर्म के आधारस्तंभ हैं। वे सहानुभूति को स्वानुभूति के स्तर पर ले जाकर लिखते हैं जिससे उनका लेखन बनावटी न होकर प्रामाणिक बन पड़ा है। छंदों के कठोर बंधन में बंधी दोहा शैली देखने में जितनी सरल व सहज प्रतीत होती है लेखन में उतनी ही जटिल व दुरुह होती है।

रोहित यादव के दोहे जहाँ शिल्प की दृष्टि से बेजोड़ कहे जाने चाहिए वहीं लक्ष्य-संधान की कसौटी पर भी खरे उतरते हैं। उनके कुछ दोहे दृष्टव्य हैं।

लड़े मोरचों पर बहुत, अन्तिम साँस जवान।
इज्जत राखी मात की, देकर अपनी जान ॥

मिलती है मंजिल उसे, हो सपनों में जान।
जिसमें होता हौंसला, भरता वही उड़ान ॥

अभी बहुत कुछ शेष है, जीवन से मत भाग ।
बुझा नहीं है आस का, जलता हुआ चिराग ॥

जन्म-मरण सब एक है, सब का लहू समान।
जाति-धर्म में क्यों बँटा, धरती का इन्सान ॥

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी रोहित यादव की अब तक लगभग डेढ दर्जन पुस्तकें विभिन्न विधाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। हरियाणा साहित्य अकादमी से पत्रकारिता में 'बाबू बालमुकुंद पुरस्कार' से सम्मानित रोहित यादव का समस्त साहित्य उनकी सामाजिक चिंताओं का प्रस्फुटन है। प्रस्तुत कृति भी इसी दिशा में उनका एक सात्विक प्रयास है जो मानवता को 'वसुधैव कुटुम्बकम्‌' की भावना का संदेश देता है। 'तमसो मा ज्योर्तिगमय' का भाव संप्रेषित करता इस संग्रह का शीर्षक 'जलता हुआ चिराग' निःसंदेह सार्थक व जीवंत प्रतीत होता है।


पुस्तक : जलता हुआ चिराग,
लेखक : रोहित यादव,
प्रकाशक : अभिव्यक्ति प्रकाशन, मंडी अटेली, हरियाणा,
पृष्ठ संख्या : 96,
मूल्य : 100 रुप ए

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