जीवन के रंग, खुशियों के संग

स्मृति आदित्य
WDWD
खुशी एक चिड़िया है, जो हमारे दिलों में चहकती है। खुशी एक तितली है, जो हमारी हथेलियों पर दमकती है। खुशी एक सहज अनुभूति है जो मन की क्यारी में महकती‍ है। इतनी ही खूबसूरत है खुशी तो फिर आखिर वह हमें मिलती क्यों नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि वह यहीं कहीं हैं हमारे पास, हमारे भीतर और हमें नजर नहीं आ रही?

वह बिखरी है हमारे इर्द-गिर्द, यत्र, तत्र-सर्वत्र और हम कस्तूरी मृग की भाँति भटक रहे हों। उसके लिए, जो हममें ही है, हमसे ही है।

खुशी के इस खुशनुमा अहसास को दिलों में जगाने का प्रयास करती है पुस्तक 'जीवन के रंग, खुशियों के संग'। बेहद आकर्षक अंदाज में सरल सरस भाषा में खुशी के नन्हे-नन्हे पलों को हमारी मन बगिया में खिलाती है यह अनूठी पुस्तक।

सेंटर फॉर सेल्फ डेवलेपमेंट के संस्थापक एस. नंद,डॉ. प्रदीप मेहता और सामाजिक कार्यकर्ता/लेखक अतुल मित्तल के सत्प्रयास का सुफल है पुस्तक ' जीवन के रंग, खुशियों के संग' ।

लेखक त्रयी अपने-अपने क्षेत्रों के जाने-माने नाम हैं। उपलब्धियों के शिखर पर पहुँच कर ही उन्हें आत्मसाक्षात्कार हुआ कि तमाम सुविधाएँ, संपन्नता क्यों और किसलिए? तीनों ने खुशियों को अपनी तरह परिभाषित किया और जवाब दिया पाठकों को कि यह पुस्तक क्यों और किसलिए और आखिर कहाँ से हासिल करें खुशी?

एस. नंद के अनुसार 'मेरा मानना है कि पहले हमें स्वयं से जुड़ना चाहिए, फिर अपनों से और फिर सबसे ।'

डॉ. प्रदीप मेहता कहते हैं- 'अगर हम जीवन में छोटी-छोटी बातों पर अपना मन खराब न करें तो हम सब ' सेंचुरी' मार सकते हैं।'

जबकि अतुल मित्तल का दर्शन है 'छोटी से छोटी बात दिल को गुदगुदा सक‍ती है और हमें खुश रहने के लिए किसी का इंतजार करने की जरूरत नहीं ।

  खुशी के इस खुशनुमा अहसास को दिलों में जगाने का प्रयास करती है पुस्तक 'जीवन के रंग, खुशियों के संग'। बेहद आकर्षक अंदाज में सरल सरस भाषा में खुशी के नन्हे-नन्हे पलों को हमारी मन बगिया में खिलाती है यह अनूठी पुस्तक...      
' हम सब मरते हैं पर हम सब जीते नहीं।'

डेनिस वेटिली के इस गूढ़ गहन कथन से पुस्तक आरंभ होती है और क्लैप-बाय-क्लैप खुशी के रहस्यों से पर्दा उठाती है। किसी विश्लेषक की भाँति बताती है‍ कि कहाँ किस मोड़ पर खुशी के प्रति हमारी उदासीनता हमें ही अकेला कर जाती है, जबकि खुशी तो थी हममें समा जाने को बेताब, बेकल। हम ही उससे मुँह मोड़े खड़े रहे आने वाले अनजाने पलों के इंतजार में।

लेखकों के अनुसार ' समय बर्बाद करना जिंदगी बर्बाद करना है क्यों‍‍कि बर्बाद किया समय भी हमारी जिंदगी का हिस्सा होता है।'

पुस्तक किसी शिक्षक की तरह हमसे पूछती है 'हम बड़ी-बड़ी खुशियों का इंतजार करते हैं पर ऐसी खुशियाँ जीवन में कितनी आएँगी 20 या 25?

बेहद प्रभावी उक्तियों, मुहावरों, प्रेरक प्रसंगों, कविताओं के टुकड़ों और शायरी से सुसज्जित पुस्तक पंक्ति दर पंक्ति पाठक के मानस में उतरती जाती है और बड़ी सहजता से उसे बदलने का साहस भी दिखा देती है।

पुस्तक बड़ी खूबसूरती से यह अहसास भी करा देती है कि कल हम क्या थे, आज क्या है और आगे हमारे विकसित होने की कितनी संभावनाएँ हैं। आइने की तरह पुस्तक आपके फीचर्स और रंगत के साथ असली खुशी में चमकती आँखों का महत्व समझाती है।

अच्छी आदतों, जीवनवृत्त, महत्वकांक्षाएँ, दुर्लभ क्षण, समय की गुणवत्ता, रिश्‍तों की महक, प्रेम, सह्रदयता, स्पर्श, कृतज्ञता, जीवन के मूलमंत्र, निपुणता, कार्यनिष्‍ठा, समाज जैसे महत्वपूर्ण विषयों को एक नई शैली में हमारे समक्ष लाती है।

लेखक त्रिवेणी बधाई के हकदार हैं कि उन्होंने जीवन के अछूते पहलुओं से भी दमकते हीरे खोज निकाले हैं। पुस्तक यूँ तो हर वर्ग हर उम्र के लिए हैं। लेकिन सही मायनों में अटकते-भटकते युवाओं के लिए यह आदर्श आचार संहिता सिद्ध हो सकती है। ‍‍

  पुस्तक बड़ी खूबसूरती से यह अहसास भी करा देती है कि कल हम क्या थे, आज क्या है और आगे हमारे विकसित होने की कितनी संभावनाएँ हैं। आइने की तरह पुस्तक आपके फीचर्स और रंगत के साथ असली खुशी में चमकती आँखों का महत्व समझाती है...      
डिस्को थैक में थिरकते युवाओं के लिए यह जितनी आवश्‍यक है ‍उससे भी अधिक अवसाद में घिरे उस मध्यमवर्गीय युवा के लिए जो मात्र अंकों को अपनी योग्यता का पैमाना मानकर आत्मघाती कदम उठा लेता है।

बहरहाल, जीवन के बहुरंगी इन्द्रधनुष में से इस 'त्रिवेणी' द्वारा कुछ सजीले रंगों का चयन कर लिखी पुस्तक भरपूर पाठकीय सुख देती है। मुद्रण की हल्की-फुल्की त्रुटियाँ खटकती है पर अटकती नहीं।

क्योंकि पुस्तक का ही सिद्धांत है असली खुशियों के लिए छोटे-मोटे दोष दरकिनार करना होगा। मुखपृष्ठ खिलखिलाते चेहरों से सजा है लेकिन अगर खिलते रंगों में होता तो शायद पुस्तक का संदेश अधिक प्रभावी होता।

यूँ तो जिंदगी को जीते हैं लोग
जिंदगियाँ हमें जिएँ तो कोई बात हैं।' (इसी पुस्तक से)

* पुस्तक- जीवन के रंग, खुशियों के संग
* लेखक- एस. आनंद, डॉ. प्रदी‍प मेहता, अतुल मित्तल
* प्रकाशन- सेंटर फॉर सेल्फ डेवलेपमेंट, इंदौर
* कीमत - 100 रु.
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

सर्दियों में रोजाना हॉट चॉकलेट पीने से क्या होता है सेहत पर असर

तन पर एक भी कपड़ा नहीं पहनती हैं ये महिला नागा साधु, जानिए कहां रहती हैं

सर्दियों में रोजाना पिएं ये इम्यूनिटी बूस्टर चाय, फायदे जानकर रह जाएंगे दंग

क्या सच में ठंडे दूध का सेवन देता है एसिडिटी से राहत

मां गंगा के पवित्र नाम पर दें बेटी को प्यारा सा नाम, पौराणिक हैं अर्थ

सभी देखें

नवीनतम

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा थे लाला लाजपत राय

क्यों एक पाकिस्तानी को मिला था भारत रत्न सम्मान , जानिए पूरी कहानी

पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण में क्या अंतर है, समझिए

दर्द महाकुंभ में खोए हुए जूतों का

महाकुंभ : न पलक झुकेगी, न मन भरेगा